Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 3
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तत्वार्यलोकवार्तिके
शक्तिरूपमदृश्यं चेदनुमानेन बाधनम् ।
आगमेन सुनिर्णीतासंभवद्वाधकेन च ॥ १० ॥ यहां चक्षु पक्ष किया गया है, जब बाह्यचक्षु कृष्ण तारामण्डल, गोलक आदि स्वरूप देखा जायगा, तब तो अर्थकी अप्राप्ति कर जाननेवाले गोलकरूप चक्षुका प्राप्त होना प्रत्यक्षप्रमाणसे ही बाधाजाता है। अथवा बालवृद्धोंद्वारा दीखनेपनको प्राप्त हो रहे कृष्ण तारा आदिक बहिरंग चक्षु जब चक्षुपदसे लिये जायंगे तब तो अर्थकी अप्राप्ति कर जाननेवाली उस चक्षुकी प्रत्यक्षसे ही बाधा उपस्थित होती है। यानी पक्ष प्रत्यक्षप्रमाणसे बाधित है । हां, यदि नहीं दीखने में आ रहा ऐसा कोई शक्तिरूप चक्षु पकडा जायगा, तब तो अनुमान प्रमाणसे बाधा उपस्थित हो जायगी। और भले प्रकार निर्णीत किया गया है बाधक प्रमाणोंका असंभव होनापन जिसका, ऐसे आगमप्रमाणकरके भी प्राप्यकारी साधनेवाला अनुमान बाध दिया जाता है, जिसको कि अभी स्पष्ट कहेंगे।
व्यक्तिरूपस्य चक्षुषः पाप्यकारित्वे साध्ये प्रत्यक्षेण बाध्यते पक्षोनुष्णोमिरित्यादिवत् । प्रत्यक्षतः साध्यविपर्ययसिद्धेः । शक्तिरूपस्य तस्य तथात्वसाधनेनुमानेन बाध्यते वत एव मुनिर्णीतासंभवदाधनागमेन च।
लौकिक जनोंमें प्रसिद्ध हो रहे गोलकखरूप व्यक्तिरूप चक्षुका प्राप्यकारीपना सान्य करनेपर तो प्रतिज्ञास्वरूप पक्ष प्रत्यक्षप्रमाण करके ही बाधित हो जाता है। जैसे कि अग्नि ठण्डी है, यह पक्ष स्पार्शनप्रत्यक्षकरके बाधित है। साध्य किये गये ठण्डेपनेसे विपरीत उष्णपना अग्निमें प्रत्यक्षप्रमाणकरके सिद्ध हो रहा है । उसी प्रकार प्रसिद्ध दृश्यमान गोलकरूप चक्षुका प्राप्यकारीपन साध्यसे विपर्यय अप्राप्यकारीपना चाक्षुषप्रत्यक्ष या स्पार्शनप्रत्यक्षसे सिद्ध हो रहा है। आंखवाले जीवोंकी चक्षुये मस्तकके अधोमागमें सन्मुख स्थित है । और घट, वृक्ष, पर्वत, चन्द्रमा मादि दृष्टव्य पदार्थ कुछ दूर देशमें स्थित हो रहे हैं। चक्षुका घट आदिके निकट जाना और घट आदिका चक्षुके अतिनिकट आकर छू लेना प्रत्यक्षगोचर नहीं है। यदि आप नैयायिक उस शक्तिरूप चक्षुका तिस प्रकार प्राप्यकारीपना साधन करोगे, यानी गोलक चक्षुके कृष्ण ताराके भग्रभागमें वर्त्तरही चक्षुकी शक्ति विषयको प्राप्तकर ज्ञान कराती है मानोगे, तब तो आपका पक्ष अनुमानप्रमाणसे बाधित हो जायगा । उस ही कारण यानी साम्यसे विपरीत अप्राप्यकारीपनकी सिद्धि हो जानेसे तुम वैशेषिकोंका अनुमान ठीक नहीं है। तथा जिसके बाधक प्रमाणोंका असम्भव होना अच्छा निर्णीत हो रहा है, उस आगमकरके भी तुम्हारा पक्ष बाधित है " अपुढे पुण परसदे सर्व " छुए बिना ही चक्षुद्वारा रूप या रूपवान् पदार्थ देख लिया जाता है, इत्यादि बागमप्रसिद्ध है।