Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 3
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तत्वार्थलोकवार्तिके
पदार्थोको अथवा रूई आदिके मोटे मध्यभाग या तलमागको नहीं प्रकाशती हैं। यह सिद्धान्त तो कुछ एक बड़े भारी आश्चर्यका आश्रयकर सुना जा रहा है। भला इस ढंगसे हमारे काचार्थतरित अर्थग्रहण हेतुकी असिद्धताका उद्भावन करा रहे वैशेषिक कैसे अपने चेतन आत्मस्वभावमें स्थित हो रहे कहे जा सकते हैं ? स्वस्थ [ होशवाला ] मनुष्य तो ऐसी युक्तिरहित कपोलकल्पित सिद्धान्तोंको गढ नहीं सकता है । अस्वस्थ [ अतिरुग्ण या उन्मत्त ] की बात न्यारी है ।
सामर्थ्य पारदीयस्य यथाऽऽयस्यानुभेदने । नालांबूभाजनोद्भेदे मनागपि समीक्ष्यते ॥ १८ ॥ काचादिभेदने शक्तिस्तथा नयनरोचिषां ॥ संभाव्या तूलराश्यादिभिदायां नेति केचन ॥ १९ ॥ तदप्रातीतिकं सोयं काचादिरिति निश्चयात् । विनाशव्यवहारस्य तत्राभावाच कस्यचित् ॥ २०॥
उदाहरण देते हुये वैशेषिक यदि यों कहें कि जिस प्रकार लोहेके बने हुये पदार्थको भेदनेमें पारेसे बने हुये पदार्थकी सामर्थ्य विचार ली जाती है, किन्तु तूम्बीपात्रको भेदनेमें पारेकी बनी हुयी रसायनकी सामर्थ्य किंचित् भी नहीं ठीक देखी जाती है। सूर्यको किरणे काच, अभ्रकके भीतर घुस जाती हैं । गजी, मलमलको पार नहीं कर सकती हैं । गजी मलमलमें पानी छन जाता है। काचमें नहीं छनता है । कठिन लोहे, पीतल के बर्तनको पारकर चुम्बक लोहेकी शक्ति सूईको पकड लेती है । किन्तु कोमल काठको पार नहीं कर पाती है। वज्र या वज्रवृषभनाराच संहननबाले पुरुषका शरीर उस कठिन पर्वत या शिलाको फोड देता है । कोमल रुईको नहीं । बिजलीका करेण्ट ताम्बा लोहेमें प्रविष्ट हो जाता है । नरम रबडमें नहीं । तिसी प्रकार नयनकिरणोंकी शक्ति काच, अभ्रक, आदिके भेद करनेमें पर्याप्त है । किन्तु कपासपिण्ड, कीच, काठ, ठंडाई, बूरा आदिको भेदनेमें चक्षुकिरणोंकी सामर्थ्य नहीं सम्भवती है, इस प्रकार कोई कह रहे हैं । अब आचार्य समाधान करते हैं कि वह उनका कहना प्रतीतियों द्वारा सिद्ध नहीं है। क्योंकि ये वे ही काच, स्फटिक आदिक हैं, इस प्रकार प्रत्यभिज्ञान द्वारा निश्चय हो रहा है। उनमें किसी भी जीवको विनष्टपनेका व्यवहार करना नहीं देखा गया है । भावार्थ-चक्षुकी रश्मियां यदि काच आदिकोंको भेद देती तो वे अवश्य टूट फूटकर नष्ट हो जाते । किन्तु शीशी आदिको देखनेवाले जीव " यह वही शीशी है, जिसको मैं एक घडी पहिलेसे बराबर देख रहा हूं " ऐसा एकत्व प्रत्यभिज्ञान जगप्रसिद्ध कर रहे हैं । स्वपक्ष और परपक्षको साधनेवाले दृष्टान्त तो यों अनेक मिल जाते हैं।