Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 3
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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खात्यावचिन्तामणिः
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उन दृष्टान्तोंमें हम बाधा नहीं उठाते हैं, किन्तु जहां दृष्टान्तोंका साध्य विचारा प्रत्यक्षप्रमाणसे ही बाधित हो रहा है, वहां वन, पारा, चुम्बक आदि दृष्टान्त क्या सहारा लगा सकते हैं ! जब कि वे के वे ही बहुत देरतक ठहरनेवाले स्फटिक आदि देखे जा रहे हैं, तो उनको कोडकर चक्षुकिरणोंका भीतर घुस जाना कैसे भी नहीं सम्भवता है।
समानसनिवेशस्य तस्योत्पचेरनाशिता। जनो मन्येत नि नकेशादेवेति चेन्मतम् ॥ २१ ॥ न कचित्रात्यभिज्ञानमेकत्वस्य प्रसाधकं । सिभ्येदिति क्षणध्वंसि जगदापातमंजसा ॥ २२ ॥
आत्मायेकत्वसिदिश्चत्प्रत्यभिज्ञानतो दृढात् ।। दाात्तत्र कुतो बाधाभावाचेत्सकृते समं ॥ २३ ॥
यदि वैशेषिक यों कहें कि उस काच, स्फटिक आदिका नाश होकर समान रचनावाले उनकी पुनः शीघ्र उत्पत्ति हो जाती है । इस कारण स्थूलदृष्टिवाला मनुष्य नहीं नाश हुयेपनको मान लेता है । जैसे कि काट दिये गये और फिर नये उपज आये केश, नख, आदिकोंका ये वे ही है, ऐसा प्रत्यभिज्ञान कर लेता है। तथा तेलधाराके क्रमसे नवीन नवीन उपज रही दीप कलिकामें भी यह वही कलिका है, ऐसी भ्रान्तिवश प्रत्यभिज्ञा कर लेता है। अर्थात्-स्फटिक काच शीशी बार बार टूट फूटकर घटिति नवीन बन जाती है । आचार्य कहते हैं कि यदि इस प्रकार वैशेषिकोंका मत होय तब तो कहीं भी पदार्थमें हो रहा यह वही है, ऐसा प्रत्यमिज्ञान उसके एकत्वका अच्छा साधक नहीं सिद्ध हो सकेगा । और ऐसी दशामें सम्पूर्ण जगत् शीघ्र शीघ्र भणमें धंस हो जानेकी टेकवाला है, यह बौद्ध सिद्धान्त आगया, जो कि वैशेषिकोंको इष्ट नहीं है। आत्मा, आकाश, परमाणु, काल, परम महापरिमाण, जाति आदि पदार्थीको वैशेषिकोंने निल माना है । घट, पट, लोहा आदिको कालांतरस्थायी माना है । यदि टूटे, झटे, नये बने, बिना ही चाहे जिस विद्यमान हो रहे पदार्थका यों ही विनाश मान लिया जायगा, तो आत्मा भी क्षणिक हो जायगा ।" यह वही आत्मा है" इस एकत्व प्रत्यभिज्ञानको आभास मानकर स्फटिकके समान सदश सनिवेशवाले दूसरे आत्माकी झटिति उत्पत्ति मानकर आत्मामें क्षणिकत्व धर दिया जायगा । और यों तो वैशेषिकसिद्धान्तमें भारी आपत्ति उपस्थित हो जायगी । यदि वैशेषिक यों कहें कि एकत्वको साधनेवाले दृढ प्रत्यभिज्ञानसे आत्मा, आकाश, आदिके एकत्वकी सिद्धि कर लेंगे, तब तो हम पूछेगे कि उस एकत्वसाधक प्रत्यभिज्ञानमें दृढ़ता किससे आवेगी ! बताओ । यदि बाधारहित