Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 3
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तरवायाचन्तामाण
त्रामाणः
कारणताका अभाव हो जायगा। अतः इन्द्रियज्ञान और स्मरणके बीचमें मानसप्रत्यक्षकी कल्पना करना व्यर्थ पडा । इन्द्रियज्ञानसे अव्यवहितकालमें उपादेयभूत स्मरण उपज जावेगा।
स्मरणाक्षविदोभिन्नो संतानौ चेदनर्थकम् । मनोध्यक्षं विनाप्यस्मात्स्मरणोत्पत्तिसंभवात् ॥ ५२ ॥ अक्षज्ञानं हि पूर्वस्मादक्षज्ञानाद्यथोदियात् । स्मृतिः स्मृतेस्तथानादिकार्यकारणतेहशी ॥ ५३॥
यदि बौद्ध यों कहें कि स्मरणज्ञान और इन्द्रियज्ञानकी दो सन्तान भिन्न भिन्न चल रही हैं। अतः स्मरणका उपादान कारण इन्द्रियज्ञान नहीं होता है । तब तो हम जैन कहते हैं कि तुम्हारे यहां मानसप्रत्यक्षकी कल्पना करना व्यर्थ रहा। क्योंकि इस मानसप्रत्यक्षके विना मी स्मरण ज्ञानकी सन्तान धारा अनुसार स्मरणकी उत्पति होना सुलभतासे सम्भव जाता, है । जिस प्रकार अपनी सन्तानरूप लडीके अनुसार इन्द्रियजन्य ज्ञान अपने पहिले इन्द्रियज्ञानरूप उपादानसे उत्पन्न हो जावेगा, उसी प्रकार स्मृतिज्ञान भी अपनी सन्तानमें पडे हुये पहिलेके स्मरणरूप उपादानसे उपज जायगा । इस प्रकारको कार्यकारणता तुम्हारी मान्यता अनुसार अनादि कालसे चली आ रही है।
संतानैक्ये तयोरक्षज्ञानात्स्मृतिसमुद्भवः ।
पूर्वं तद्वासनायुक्तादक्षज्ञानं च केवलात् ॥ ५४॥ .
यदि बौद्ध महाशय उन इन्द्रियज्ञान और स्मरणज्ञानकी एकसन्तान स्वीकार कर लेंगे तब तो इन्द्रियज्ञान स्वरूप उपादानसे स्मृतिकी उत्पत्ति भले ,प्रकार हो सकती है। वासनारहित केवल पूर्वके अक्षज्ञानसे इन्द्रियज्ञान उत्पन्न होगा और पूर्वकालकी उसकी वासनासे सहित हो रहे विशिष्ट अक्षज्ञानसे स्मरणज्ञान उत्पन्न हो जायगा, यह उपाय अच्छा है।
सह स्मृत्यक्षविज्ञाने ततः स्यातां कदाचन । सौगतानामिति व्यर्थं मनोध्यक्षप्रकल्पनं ॥ ५५॥ ..
पूर्वविचार अनुसार बौद्ध यदि स्मरण और इन्द्रियज्ञानकी सन्तानधारायें दो मानेंगे तब तो बौद्धोंके यहां तिन दो सन्तानोंसे कभी कभी स्मरण और अक्षज्ञान साथ साथ हो जावेंगे । इस प्रकार मध्यमें मानसप्रत्यक्षकी सौकर्यके लिये कल्पना करना व्यर्थ पडा। ..
स्याद्वादिनां पुनर्ज्ञानावृत्तिच्छेदविशेषतः। . समानेतरविज्ञानसंतानो न विरुध्यते ॥ ५६ ॥