Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 3
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तत्त्वार्थ श्लोकवार्तिके
है। और एक ज्ञान भी समूहरूपसे अनेक अर्थोको विषय करता रहता है । सर्वज्ञका वर्तमानकालमें हुआ एक ज्ञान तो त्रिकालके अनेक प्रमेयोंको युगपत् जान लेता है।
प्रत्यक्षाणि बहून्येव तेष्वज्ञातानि चेत्कथम् । तद्वद्वोधैकनि सैः शतैश्चेन्नापबाधनात् ॥ १५॥
शंकाकार विद्वान् कहता है कि उन अनेक पदार्थोको जाननेमें एक प्रत्यक्ष नहीं प्रवर्त रहा है। किन्तु बहुत प्रत्यक्षों द्वारा एक एक को जानकर बहु या बहुप्रकार पदार्थोका ज्ञान हुआ है । अतिशीघ्र लघुतासे झट पीछे पीछे प्रवृत्ति होने के कारण अथवा युगपत् अनेक प्रत्यक्ष उत्पन्न हो जानेके कारण तुमको वे अनेक प्रत्यक्ष ज्ञात नहीं हो सके हैं । इस प्रकार कहनेपर तो हम पूछेगे कि उन अज्ञात अनेक प्रत्यक्षोंकी सत्ता कैसे जानी जायगी ? बताओ । उन उन अनेक ज्ञानोंको जाननेके लिये यदि एक एकको प्रकाशनेवाले अनेक ज्ञान उठाये जायंगे, ऐसे सैकडों प्रकाशक ज्ञानोंकरके उनका प्रतिभास होना माना जायगा, यह कहना तो ठीक नहीं । क्योंकि उन ज्ञानोंका भी बाधारहितपनेसे निर्णय नहीं हो पाया है । अतः हमारी समझ अनुसार उन अनेक ज्ञानोंको जाननेवाला ज्ञान तो एक ही आपको मान लेना चाहिये । तद्वत् अनेक विषयोंको एक ज्ञान जान लेता है।
तद्वोधबहुतावित्तिर्वाधिकात्रेति चेन्मतं । सा यद्येकेन बोधेन तदर्थेष्वनुमन्यताम् ॥ १६ ॥ बहुभिर्वेदनैरन्यज्ञानवेद्यैस्तु सा यदि। तदवस्था तदा प्रश्नोनवस्था च महीयसी ॥ १७ ॥
यदि प्रश्नकर्ता यों कहे कि उन अनेक ज्ञानोंके बहुतपनेका ज्ञान हो रहा है । अतः वह सबका एक ज्ञान हो जानेका बाधक है । इस प्रकार मन्तव्य होने पर तो हम जैन कहते हैं कि अनेक ज्ञानों के बहुतपनेका वह ज्ञान यदि एक ही ज्ञानकरके माना जायगा, तब तो उसी अनेक ज्ञानोंको जाननेवाले एकज्ञान समान अनेक अर्थोंमें भी एक ज्ञानद्वारा ज्ञप्ति होना मानलो । यदि अन्य तीसरे प्रकार के अनेक ज्ञानोंसे जानने योग्य दूसरे प्रकारके बहुत ज्ञानोंकरके बहुतोंको जाननेवाले पहिले अनेक ज्ञानोंका वह प्रतिभास माना जायगा, तब तो तीसरे प्रकारके ज्ञानोंको जानने के लिये चौथे प्रकारके ज्ञान सनुदायकी वित्ति आवश्यक होगी। उसके लिये पांचवे प्रकारके ज्ञान मानने पडेंगे । अन्य ज्ञानोंसे अज्ञात हुये ज्ञान पूर्वज्ञानोंको जान नहीं सकते हैं, तब तो वैसाका वैसा ही प्रश्न तदवस्थ रहेगा और बडी लम्बी महती अनवस्था हो जायगी।