Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 3
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तत्त्वार्थचिन्तामणिः
यथा नवशरावादौ द्वित्र्याद्यास्तोयबिंदवः। अव्यक्तामार्द्रतां क्षिप्ताः कुर्वति प्राप्यकारिणः ॥४॥ पौनःपुन्येन विक्षिप्ता व्यक्तां तामेव कुर्वते । । तत्प्राप्तिभेदतस्तद्वदिद्रियाण्यप्यवग्रहम् ॥ ५॥
जिस प्रकार कि मिट्टीके नये शकोरा, भोलआ आदि बर्तनोंमें छोटी छोटी पानीकी दो, तीन, चार आदिक बिन्दुयें प्राप्यकारी होकर गेर दी गयीं अव्यक्त गीलेपनको करती है, हां, पुनः पुनः स्वरूपकरके कई वार डाली गयीं वे ही जलबिन्दुयें उस व्यक्त आर्दताको कर देती हैं। क्योंकि व्यक्त, अव्यक्त गीला करनेमें उन जलबिन्दुओंकी पात्रके साथ प्राप्ति विशिष्ट प्रकारकी है । उसीके समान चार इन्द्रियां और दो इन्द्रियां भी अवग्रहको अव्यक्त और व्यक्त कर देती हैं।
अप्राप्तिकारिणी चक्षुर्मनसी कुरुतः पुनः । व्यक्तामर्थपरिच्छित्तिमप्रारविशेषतः॥६॥ यथायस्कांतपाषाणः शल्याकृष्टिं खशक्तितः। करोत्यप्राप्यकारीति व्यक्तिमेव शरीरतः॥७॥
किन्तु फिर चक्षु और मन ये दो इन्द्रियां तो अप्राप्यकारी होती हुई व्यक्त अर्यज्ञप्तिको करती है। क्योंकि दोनों इन्द्रियोंमें अप्राप्ति होनेका कोई अन्तर नहीं है, जैसे कि दूरसे लोहेको खीचनेवाला चुम्बक पत्थर अपनी शक्तिसे ही सूई, बाण आदिका आकर्षण कर लेता है। इस कारण यह चुम्बक पाषाण आकर्यविषयके साथ प्राप्ति नहीं करता हुआ अपने शरीरसे ही खेचना रुप कार्यको व्यक्त ही कर देता है । चुम्बक पाषाण दो प्रकारके होते हैं । पहिले तो दूरसे ही लोहेको खींचकर चुपटा लेते हैं। दूसरे वे हैं, जो दूरसे तो खींच नहीं सकते हैं, किन्तु लोहेका स्पर्श हो जानेपर उसको खींचे रहते हैं। ऐसी ही दशा अप्राप्यकारी और प्राप्यकारी इन्द्रियोंकी समझ लेना।
न हि यथा स्वार्ययोः स्पृष्टिलक्षणापातिरन्योपचयस्पृष्टितारतम्याद्भिद्यते तथा तयोरमाप्तिर्देशव्यवधानलक्षणापि कात्स्न्]नास्पृष्टेरविशेषात् ।। _ कारण कि स्व यानी इन्द्रियां और अर्थका स्पर्श हो जानास्वरूप प्राप्ति जिस प्रकार कि दूसरेके साथ न्यून अधिक, गाढ, एकदेश, सर्वदेश, भीतर, बाहर, बढा हुआ, घटा हुआ, आदि छनेके तारतम्यसे न्यारी न्यारी हो जाती है, उस प्रकार उन इन्द्रिय और विषयोंकी देशिक व्यवधान स्वरूप अप्राप्ति भी मिन्न मित्र नहीं होती है। क्योंकि अपने पूर्ण स्वरूपकरके दूरदेशवर्ती विषयके
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