Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 3
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तत्त्वार्थचिन्तामणिः
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खतो बह्वर्थनिर्भासिज्ञानानां बहुता गतिः । नान्योन्यमनुसंधानाभावात्मत्यात्मवर्तिनाम् ॥ १८ ॥
बहुत अर्थोको प्रकाशनेवाले अनेक ज्ञानोंका बहुतपना यदि स्वतः ही जान लिया जायगा सो तो ठीक नहीं । क्योंकि यों माननेपर तो प्रत्येक अपने अपने स्वरूपमें वर्त रहे उन ज्ञानोंका परस्परमें प्रत्यभिज्ञानरूप अनुसंधान नहीं हो सकेगा। किन्तु एक जीवके अनेक ज्ञानोंका अनुसंधान हो रहा है । जैसे कि स्पर्श इन्द्रियसे जाने गये पदार्थको मैं देख रहा हूं, देखे हुये पदार्थका ही स्वाद ले रहा हूं । स्वादिष्टको सूंव रहा हूं। सूंचे जाचुके का विचार कर रहा हूं। उनकी व्याप्तिका ज्ञान कर रहा हूं, इत्यादि ढंगसे ज्ञानोंके परस्परमें अनुसंधान होते हैं । अतः जैनोंके समान स्वतः जाननेका पक्ष लेना आपको पथ्य नहीं पडेगा।
तत्पृष्ठजो विकल्पश्चेदनुसंधानकृन्मतः।
सोपि नानेकविज्ञानविषयस्तावके मते ॥ १९ ॥ ....... बह्वर्थविषयो न स्याद्विकल्पः कथमन्यथा ।
स्पष्टः परंपरायासपरिहारस्तथा सति ॥ २० ॥
उन बहुतसे ज्ञानोंके पीछे होनेवाला विकल्पज्ञान यदि उन ज्ञानोंके अनुसंधानको करनेवाला माना जायगा सो वह भी तो तुम्हारे मतमें अनेक विज्ञानोंको विषय करनेवाला नहीं माना गया है। एक विकल्पज्ञान भी तो आपके यहां एक ही ज्ञानको जान सकेगा। यदि आप अपना प्रत्येक विषयके लिये प्रत्येक ज्ञान के सिद्धान्तको छोडकर दूसरे प्रकारसे एक विकल्पज्ञानद्वारा बहुत ज्ञानोंका विषय कर लेना इष्ट कर लोगे तब तो विकल्पज्ञान बहुत अर्थोको विषय करनेवाला कैसे नहीं होगा ! हम स्याद्वादी कहते हैं कि अनेक पदार्थोको जाननेवाला विकल्प स्पष्ट दीख रहा है। और तिस प्रकार माननेपर परम्परासे हुये कठिन परिश्रमका परिहार भी हो जाता है । अर्थात-एक ज्ञान स्वको स्पष्टरूपसे जानता हुआ अनेक अर्थोको साक्षात् जान रहा है । ऊंटकी पूंछमें बंधी हुई ऊंटोंकी पंक्तिके समान या चूनके गृझेमें घुसे हुये चूनके समान अनेक अनेक ज्ञानोंकी परम्परा या अन्योन्याश्रयका व्यर्थ परिश्रम नहीं उठाना पडता है । जैनसिद्धान्त अनुसार परम्पराका निरास करना स्पष्ट है। - यथैव बबर्थज्ञानानि बहून्येवानुसंधानविकल्पस्तत्पृष्ठजः स्पष्टो व्यवस्यति तथा स्पष्टो व्यवसायः सकृद्रहून् बहूविधान् वा पदार्थानालंबतां विरोधाभावात् । परंपरायासोप्येवं परिहतः स्यात्ततो झटिति बहाद्यर्थस्यैव प्रतिपत्तेः ।
उन ज्ञानों के पीछे होनेवाला अनुसंधान करनेवाला विकल्प जैसे ही बहुत अर्थाको जाननेवाले . बहुत ज्ञानोंको ( का.) स्पष्ट होता हुआ निर्णय कर लेता ही है, उसी प्रकार स्पष्ट हो रहा अवग्रहः