Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 3
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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'तत्त्वार्थचिन्तामणिः
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निरूपण है । इस विषयनिरूपणके अतिरिक्त अन्य कोई प्रयोजन दीखता नहीं है । फिर इस लम्बे सूत्रद्वारा बन्धन बढाकर गम्भीरप्रन्थका शरीर क्यों बोझिलं किया जा रहा है ? इस प्रकार मनमें मान रहे मनमौजी विद्वान् के प्रति श्री विद्यानंद आचार्य समाधान कहते हैं ।
केषां पुनरिमेवग्रहादयः कर्मणामिति ।
प्राह संप्रतिपत्त्यर्थं बह्नित्यादिप्रभेदतः ॥ १ ॥
जिस प्रकार अन्नरूप कर्मकी पाकक्रिया होती है, शास्त्ररूप कर्मकी अध्ययनक्रिया होती है, उसी प्रकार ये अवग्रह आदिक क्रियाविशेष फिर किन कर्मोंके होते हैं ? इसको भेद प्रभेदसे भले प्रकार समझाने के लिये प्रन्थकार उमास्वामी महाराज बहु, बहुविध, इत्यादि सूत्रको अच्छा कहते हैं अथवा ज्ञानके विषयभूत अर्थको बहु आदि प्रभेदोंसे समझानेके लिये यह सूत्र कहा है ।
नावग्रहादीनां विषयविशेषनिर्ज्ञानार्थमिदमुच्यते प्राधान्येन । किं तर्हि । बहादिकर्मद्वारेण तेषां प्रभेदनिश्चयार्थ कर्मणि षष्ठीविधानात् ।
अवग्रह आदि ज्ञानोंके विशेष विषयोंका निर्णय करानेके लिये यह सूत्र प्रधानतासे नहीं कहा जाता है, तो " किसलिये कहा जाता है ? " ऐसी जिज्ञासा होनेपर यह उत्तर है कि बहु, बहुविध आदिक ज्ञेयकर्मो के द्वारा उन अवग्रह आदिकोंके प्रभेदोंका निश्चय करानेके लिये यह सूत्र कहा है । " कर्तृकर्मणोः कृति षष्ठी " इस सूत्रद्वारा यहां कर्ममें षष्ठी विभक्तिका विधान किया है । अवप्रणाति, हते, अवैति, धारयति, इस प्रकार गणके रूपोंका प्रयोग होनेपर तो 1. कर्म में द्वितीया हो जाती है । किन्तु कृदन्त प्रत्ययान्त अवग्रह, ईश, अवाय, धारणा, इस प्रकार क्रियाओं का प्रयोग होनेपर तो कर्ममें षष्ठी विभक्ति हो जाती है । अतः अवग्रह आदि ज्ञानोंके व्याप्यभेदोंको विषयमुद्रासे समझानेके लिये यह सूत्र कहा गया है । सर्वत्र लाघव गुण दिखलानेकी ठेव अच्छी नहीं है । आततायी पुरुषका लाघव दिखलाना तुच्छता दोषमें परिणत हो जाता है । किम्वदन्ती है कि एक लोभिन सासुने अपने जामाताका सुसज्जित वस्त्र नहीं देकर एक बनोसे सत्कार किया और तर्क उठानेपर व्याख्यात्री श्वश्रूने दामाद को समझा दिया कि सम्पूर्ण अनेक प्रकारके वस्त्रोंका आदि बीज यह बिनौरा ही है । अधिक गौरव बढानेकी अपेक्षा यह लाघव अच्छा है । इस प्रकरणके कुछ समय पीछे सासका लडका जब अपनी बहिनको लिवानेके लिये अपने जीजा के ग्रामको गया तो उसके काब खारहे जीजाने अपने सालेको भोजनकी थाली में पोंडेकी एक अंगुल गांठ परोस दी और समझा दिया कि सम्पूर्ण मिठाईयों का मूल कारण यह गांठ है । श्री गोम्मटसार में खांड बनानेवाले पोंडाको पर्वबीज माना है। अभिप्राय यह है कि ऐसे जवन्य लाघवोंसे कोई प्रयोजन नहीं सकता है । महती हानि उठानी पडती है । शीतबाधाका दूर करना, शरीर की
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