Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 3
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तत्त्वार्थचिन्तामणिः
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प्रमाणबाधितत्वेन साध्याभासत्वभाषणे । सर्वस्तथेष्ट एवेह सर्वथैकांतसंगरः ॥ ३४३ ॥
यहां कोई बौद्ध विद्वान् इस प्रकार मान बैठे हैं कि शब्दमें क्षणिकपनके एकान्तको साधने पर सत्त्वात् यह हेतु दृष्टान्त नहीं मिल सकनेके कारण अशक्य भी पक्ष मानलिया गया है। फिर जैनोंद्वारा साध्यका विशेषण शक्य क्यों लगाया जाता है ! इसपर आचार्य कहते हैं कि तब तो उनके यहां तिस ही कारण यानी दृष्टांत नहीं मिल सकनेसे संपूर्ण पदार्थ अनेक धर्मवाले हैं, इस प्रकार प्रतिज्ञा बोलना विरुद्ध हो जावेगा। दोनोंके यहाँ पहिलेसे प्रसिद्ध हो रहा. दृष्टान्त ते कहीं भी नहीं मिल सकता है । अतः अशक्यका अर्थ दृष्टान्तका अभाव करना ठीक नहीं। यदि प्रमाणोंसे बाधित हो जानेके कारण सबको अनेकान्तपनके इस साधनेको साध्यामासपना कहोगे तब तो तिस प्रकार सब पदार्थोके सर्वथा एकान्तपनकी प्रतिज्ञा यहां इष्ट ही करली गयी। किन्तु सर्वथा एकान्त भी तो प्रभाणसे बाधित है। .
तथा साध्यमभिप्रेतमित्यनेन निवार्यते ।। अचुक्तस्य स्वयं साध्यभावाभावः परोदितः ॥ ३४४॥ यथा ह्युक्तो भवेत्पक्ष तथानुक्तोपि वादिनः। प्रस्तावादिबलात्सिद्धः सामर्थ्यादुक्त एव चेत् ॥ ३४५॥ खागमोक्तोपि किं न स्यादेव पक्षः कथंचन । तथानुक्तोपि चोक्तो वा साध्यः खेष्टोस्तु तात्त्विकः ॥ नानिष्टोतिप्रसंगस्य परिहर्तुमशक्तितः ॥ ३४६ ॥ (षट्पदम् )
तथा वादीको अभिप्रेत हो रहा साध्य होता है । यो सायके लक्षणमें पडे हुये अभिप्रेत इस विशेषण करके अनिष्टको स्वयं ही साध्यपना निवारण कर दिया जाता है। दूसरे वादियोंने भी अनिष्टका साध्यपना नहीं कहा है । अथवा शब्दद्वारा भले ही साध्यको न कहा होय, यदि वादीने अन्य अभिप्रायोंसे समझा दिया है तो वह भी साध्य हो जाता है। अनुक्कको साध्यरहितपनका अभाव है। कारण कि जिस प्रकार वादीके द्वारा कंठोक्त कह दिया गया पक्ष हो जाता है, उसी प्रकार वादीकरके नहीं कहा गया किन्तु अभिप्रेत हो रहा मी पक्ष हो जाता है। यदि कोई यों कहे कि प्रस्ताव, प्रकरण, अवसर, "आदिके बलसे सिद्ध हो रहा भी पक्षसामर्थ्यसे कह दिया गया ही समझो, तब तो हम सिद्धान्ती कहेंगे कि अपने प्रामाणिक आगमोंसे कहा गया भी कयंचित् पक्ष क्यों नहीं हो सकेगा ! तब तो यह सिद्ध हुआ कि उक्त हो