Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 3
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
View full book text
________________
तत्त्वार्थश्लोकवार्तिके
अस्वसंवेद्यविज्ञानवादी पूर्व निराकृतः। परोक्षज्ञानवादी चेत्यलं संकथयानया ॥ १५॥
जो नैयायिक, वैशेषिक आदि वादी विद्वान् ज्ञानका स्वसम्वेदन प्रत्यक्ष होना नहीं कहते हैं, उनका हमने पूर्व प्रकरणोंमें निराकरण कर दिया है। तथा ज्ञानको सर्वथा परोक्ष माननेवाले मीमांसक वादीके मन्तव्यका भी हम विशदरूपसे खण्डन कर चुके हैं । अतः ज्ञानका स्वसम्वेदन प्रत्यक्ष होनेके सिद्धान्तमें व्यर्थ विघ्न डालनेवाले इस लम्बे चौडे विवाद कथन करनेसे पूरा पडो, अर्थात्-व्यर्थ झगडा नया खडा करनेसे नैयायिक, मीमांसकोंको कुछ हस्तगत नहीं हो सकता है।
. ततः सूक्तमिदमुत्तरावधारणं परमतालंबनजन्यत्वव्यवच्छेदार्थ सूत्रे पूर्व तु मत्यज्ञानादिनिवृत्त्यर्थं संज्ञिपंचेंद्रिय जमेवेति तदेवेंद्रियानिद्रियनिमित्तमुच्यते । संज्ञिपंचेंद्रियाणां मिथ्याशा मत्यज्ञानमपींद्रियानिद्रियनिमित्तमस्ति तस्य कुतो व्यवच्छेदः सम्यगधिकारात् । . तिस कारण श्री विद्यानन्द आचार्यने यह बहुत अच्छा कहा था कि " तदिन्द्रियानिन्द्रिय निमित्तम् ” इस सूत्रमें अनुक्त भी दोनों एवकार उद्देश्य विधेय दलोंमें उमास्वामी महाराजको अभिप्रेत हैं । तिनमें वह मतिज्ञान इन्द्रिय अनिन्द्रियोंसे ही उत्पन्न होता है । यह विधेय दलका उत्तर अव. धारण तो अन्य मति बौद्धोंके मन्तव्यानुसार ज्ञानका आलम्बन विषयसे उत्पन्न होनेपनको व्यवच्छेद करनेके लिये दिया गया है । और वह मतिज्ञान ही इन्द्रिय अनिन्द्रियरूप निमित्तोंसे उत्पन्न होता है । यह पहिला अवधारण तो मतिअज्ञान, श्रुतज्ञान, आदिकी निवृत्ति करनेके लिये है। वह मतिज्ञान संज्ञी पंचेन्द्रिय जीवोंके ही उत्पन्न होता है । इस कारण वह मतिज्ञान ही इन्द्रिय और अनिन्द्रिय निमित्तोंसे बना हुआ कहा जाता है। अन्य एकेन्द्रियको आदि लेकर असंज्ञी पंचेन्द्रिय तक जीवोंके उत्पन्न हुये मति अज्ञानमें तो बहिरंग इन्द्रियां ही निमित्त हैं । यदि यहां कोई यों कहे कि संज्ञी पंचेन्द्रिय मिथ्यादृष्टि जीवोंके भी तो मति अज्ञान उत्पन्न होनेमें इन्द्रिय और अनिन्द्रिय निमित्त बन जाते हैं, तो फिर उस मति अज्ञानका पहिले अवधारणसे व्यवच्छेद कैसे हुआ ! बताओ। इसपर हम जैन कहते हैं कि पूर्व सूत्रोंसे यहां सम्यक् शब्दका अधिकार चला आ रहा है । मिथ्यादृष्टियोंका ज्ञान समीचीन नहीं है । तथा मिथ्यादृष्टियोंके इन्द्रिय, अनिन्द्रिय, भी सम्यक् नहीं हैं। . तत एवासंज्ञिपंचेंद्रियांतानां मत्यज्ञानस्य व्यवच्छेदोस्तु तर्हि श्रुतव्यवच्छेदार्थ पूर्वावधारणं तस्यानिद्रियमात्रनिमित्तत्वात् । तथा मिथ्यादृशां दर्शनमोहोपहतमानिद्रियं सदप्यसत्कल्पमिति विवक्षायां तद्वेदनमिंद्रियजमेवेति मत्यज्ञानं सर्व नोभयनिमित्तं ततस्तव्यवच्छेदार्थ च युक्तं पूर्वावधारणम् ।
इसपर यदि कोई यों कहे कि तिस ही कारण यानी सम्यक्का अधिकार चले आनेसे ही एकेन्द्रियको आदि लेकर असंज्ञी पंचेन्द्रियपर्यन्त जीवोंके मति अज्ञानका व्यवच्छेद हो जावेगा,