Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 3
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
View full book text
________________
३९८
तत्वार्थश्लोकवार्तिके
1
पक्ष तो प्रसिद्ध ही होना चाहिये । किन्तु जिस पक्षके जानने की इच्छा विशेषरूपसे उत्पन्न हो रही है, वह धर्मी पक्ष बना लिया जाता है । यह जिन प्रवादियों करके माना जा रहा है । उन नैयायिक या बौद्धों के यहां तो " प्रमाणानि सन्ति स्वष्टसाधनात् ” प्रत्यक्ष आदिक प्रमाण ( पक्ष ) हैं ( साध्य ) अपने अपने अभीष्ट तत्त्वोंकी सिद्धि होना देखा जाता है ( हेतु ), यह पक्ष कैसे बन सकेगा ? यहां धर्मी प्रमाणों के सर्वथा अप्रसिद्धरूप होनेपर भी भला हेतु गमक कैसे मान लिया गया है । बताओ । किन्तु सज्जन विद्वानोंने यहां संशयरहित होकर अन्यथानुपपत्ति सिद्ध हो रही मानी है | अतः यह समीचीन हेतु है । बौद्धोंका यह अभिप्राय था कि संदिग्धपुरुषको ही जिज्ञासा होती है । विपर्ययी और अज्ञानी तो जानने, समझनेकी इच्छा नहीं रखते हैं । इसपर आचार्योंने कहा है कि इष्टसाधन की व्यवस्था होनेसे प्रमाणतत्त्व हैं । यह तो विपरीत ज्ञानी या अज्ञानियोंके प्रति ही विशेषरूप से साधा जाता है । जो शून्यवादी या उपप्लववादी प्रमाणको कथमपि जानना नहीं चाहते हैं, उनके प्रति उक्त प्रमाण साधक अनुमान बोला गया है, तब तो प्रसिद्ध " हो रहे किन्तु जिज्ञासित विशेषको पक्ष नहीं कहना चाहिये । क्षणिक सिद्धान्ती बौद्धों के यहां प्रतिज्ञा बोल चुकनेपर हेतुकथन, व्याप्तिस्मरण, पक्षवृत्तित्वज्ञान आदि करते समय वह प्रतिज्ञा तो नष्ट हो जाती है । इस ढंगसे भी पक्ष प्रसिद्ध न हो सका । फिर प्रसिद्धको पक्ष बनाने का आग्रह क्यों किया जा रहा है ?
1
धर्मिसंतानसाध्याश्चेत् सर्वे भावाः क्षणक्षयाः ।
इति पक्षो न युज्येत तोस्तद्धर्मतापि च ॥ ३६९ ॥ प्रत्यक्षेणाप्रसिद्धत्वाद्धर्मिणामिह कात्तः ।
अनुमानेन तत्सिद्धौ धर्मसत्ताप्रसाधनं ॥ ३७० ॥
यदि बौद्ध यों कहे कि चली आरही धर्मीकी संतानको साध्य बनालियां जायगा वह संतान तो देरतक टिकती है। ऐसा कहनेपर तो हम जैन कहेंगे कि सम्पूर्ण पदार्थ क्षणिक हैं, यह पक्ष तुम्हारे यहां युक्त नहीं हो सकेगा तथा हेतुको उस पक्षका धर्मपना भी नहीं बन सकेगा । क्योंकि इस प्रकरण में संपूर्णरूप से धर्मी पदार्थोंकी प्रत्यक्ष प्रमाणसे प्रसिद्धि नहीं हो रही है । अर्थात् पक्षकोटि में पडे हुये संपूर्ण पदार्थोंका प्रत्यक्षज्ञान प्रतिपाद्य और प्रतिपादकोंको नहीं हो रहा है । यदि अन्य अनुमान से उन संपूर्ण पदार्थोंके ज्ञानकी सिद्धि करोगे तब तो यहां धर्मियोंकी सत्ताको प्रसिद्ध करना आवश्यक कार्य हो गया । क्षणिकत्वको साधनेवाला अनुमान गौण पड गया, जो कि माना नहीं गया है । अथवा अनुमानसे भी धर्मिओकी सत्ताका प्रसिद्ध रूप से साधन नहीं हो सकता है।