Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 3
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
View full book text
________________
तत्त्वार्थ श्लोकवार्तिके
मेरे शिरमें सुख है, मेरे पांवमें वेदना है, इत्यादि विशेषरूपोंसे आत्माके सुख आदिकोंका यद्यपि प्रदेशोंमें वर्तना अनुभवा जा रहा है। और उन सुख आदिकोंके विशेष सम्वेदन होनेका भी अखण्ड आत्माके कतिपय प्रदेशोंमें ही अनुभव हो रहा है, तो भी ज्ञानसामान्यका सम्पूर्ण आत्मा द्रव्यके प्रदेशोंमें वर्तना ही सिद्ध है। जो पदार्थ सामान्यज्ञानसे भी रहित है, उसके आत्मपनका विरोध है । क्योंकि ज्ञानरहितको भी यदि आत्मा मान लिया जायगा तो डेल, कटोरा, आदि जड पदार्थो में भी आत्मापनेकी अतिव्याप्ति हो जावेगी । इस बातको हम उपयोगस्वरूप आत्माको साधते समय सिद्ध कर चुके हैं । तिस कारण आत्माको अव्यापक साधनेके लिये दिया गया " कार्यमें ही सुख आदिककी उपलब्धिरूप हेतु व्यापकविरुद्ध-कार्य उपलब्धि है । यह युक्तिओंसे भरपूर है"।
विरुद्धकार्यसंसिद्धिर्नास्त्येकांतेनपेक्षिण्य । नेकांतेऽर्थक्रियादृष्टेरित्येवमवगम्यते ॥ २६० ॥
विरुद्ध कार्य उपलब्धिका उदाहरण इस प्रकार जाना जाता है कि अपेक्षारहित एकान्तमें किसी भी कार्यकी भले प्रकार सिद्धि नहीं है। अतः अपेक्षाओंसे रहित हो रहा सर्वथा एकान्त नहीं है। क्योंकि अनेक धर्मोसे युक्त हो रहे पदार्थमें अर्थक्रियाका होना देखा जा रहा है। यहां कविसङ्केतकी नहीं अपेक्षा कर नैयायिक आचार्यने द्वितीयपाद और तृतीयपादमें सन्धि कर दी है।
निरपेकांतेन ह्यनेकांतो विरुद्धस्तत्कार्यमर्थक्रियोपलब्धिनिषेध्यस्याभावं साधयति ।
कारण कि अपेक्षाओंसे रहित हो रहे एकान्तसे अनेकान्त विरुद्ध है। उस अनेकान्त अर्थका कार्य अर्थक्रियाकी उपलब्धि है । वह निषेध करने योग्य एकान्तके अभावका साधन करा देती है। अतः साध्य कोटिमेंसे अभावको निकालकर उस निषेध्यसे विरुद्ध अर्थके कार्यकी संसिद्धि होनेसे यह विरुद्धकार्य-उपलब्धिरूप हेतु है।
कारणार्थविरुद्धा तूपलब्धिर्ज्ञायते यथा । नास्तिमिथ्याचरित्रं मे सम्यग्विज्ञानवेदनात् ॥ २६१ ॥ तद्धि मिथ्याचरित्रस्य कारणं विनिवर्तयेत् । मिथ्याज्ञाननिवृत्तिस्तु तस्य तद्विनिवर्तिका ॥ २६२ ॥
कारणरूप अर्थसे विरुद्धकी उपलब्धि तो इस उदाहरण द्वारा जान ली जाती है कि मेरे पास मिथ्याचारित्र नहीं है (प्रतिज्ञा ), क्योंकि सम्यक्ज्ञान प्रकाश रहा है (हेतु )। इस अनुमानमें निषेध करने योग्य मिथ्याचारित्रका कारण मिथ्याज्ञान है । उस मिथ्याज्ञानके विरुद्ध हो रहे