Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 3
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तत्वार्थ लोक वार्तिके
कारणद्विष्टकार्योपलब्धिर्याथात्म्यवाक्ततः ।
तस्य तेनाविनाभावात् पारंपर्येण तत्त्वतः ॥ २६३ ॥
कारणविरुद्ध कार्य उपलब्धिका उदाहरण यों समझना कि मेरे मिथ्याचारित्र नहीं है । क्योंकि सत्यार्थवचन बोलना हो रहा है । वस्तुतः विचारा जाय तो उस यथार्थ वचनका उस मिथ्याचात्रिके अभाव के साथ परम्परासे अविनाभाव हो रहा है । अतः यह हेतु साध्यका भले प्रकार ज्ञापक है।
नास्ति मिथ्याचारित्रमस्य याथात्म्यवाक्कादिति कारणविरुद्ध कार्योपलब्धिः मिथ्याचारित्रस्य हि निषेध्यस्य कारणं मिथ्याज्ञानं तेन विरुद्धं सम्यग्ज्ञानं तस्य कार्य याथात्म्यवचनं निर्माय सुविवेचितं निषेध्याभावं साधयत्येव व्यभिचाराभावात् ॥
इस जीवके मिथ्याचारित्र नहीं है ( प्रतिज्ञा ), यथार्थस्वरूप वचनप्रयोग होनेसे ( हेतु ), इस अनुमान में दिया गया हेतु कारणविरुद्ध कार्यउपलब्धिरूप है। क्योंकि निषेध करने योग्य मिथ्याचारित्रका कारण मिथ्याज्ञान है । उस मिथ्याज्ञानसे विरुद्ध सम्यग्ज्ञान है । उस सम्यज्ञानका कार्य यथार्थवचन कहना है । अतः सम्यज्ञानद्वारा बनाया जाकर वह यथार्थ वचन हेतु भले प्रकार विवेचन किये गये निषेध्य मिथ्याचारित्रके अभावको साध देता ही है । कोई व्यभिचार, असिद्ध, आदि दोष नहीं आते हैं ।
कारण व्यापक द्विष्टोपलब्धिर्नास्तिनिर्वृतिः । सांख्यादेर्ज्ञानमात्रोपगमादिति यथेक्ष्यते ॥ २६४ ॥ निर्वृतेः कारणं व्याप्तं दृष्ट्यादित्रितयात्मना । तद्विरुद्धं तु विज्ञानमात्रं सांख्यादिसम्मतम् ॥ २६५ ॥
निषेधरहित साध्य के कारणके व्यापकसे विरोध रखनेवालेकी उपलब्धि हेतुका उदाहरण इस प्रकार पहिचाना जाता है कि सांख्य, अक्षपाद, कणाद आदिके यहां मोक्ष नहीं बनती है, क्योंकि उन्होंने अकेले तत्रज्ञानको ही मुक्तिका कारण स्वीकार किया है । अर्थात् रत्नत्रयसे मुक्तिसंपादन किया जाता है । अकेले ज्ञानसे तो मोक्ष नहीं हो पाती है। इस अनुमानमें निषेध करने योग्य मुक्तिका कारण सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यक् चारित्र इस त्रितयस्वरूपसे व्याप्त हो रहा है । और उस रत्नत्रय से अकेला विज्ञान तो विरुद्ध पडता है, जो कि सांख्य नैयायिक आदि वादियों की सम्मतिमें आरहा है | सांख्योंने “ तत्त्वज्ञानान्मोक्षः " प्रकृति और पुरुषका मेदज्ञानरूप-तत्वज्ञान से मोक्ष होना अभीष्ट किया है । नैयायिकोंने दुःख - जन्म-प्रवृत्ति आदि सूत्र द्वारा तत्वज्ञान हीको मोक्षका कारण माना है । वैशेषिक, योग, आदि वादियोंकी भी यही दशा है।
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