Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 3
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तत्त्वार्थचिन्तामणिः
विना भी क्यों न हो जाय ! भावार्थ-संकेतस्मरण, शब्दयोजना, आदिके विना ही स्वार्थ व्यवसायरूप दर्शन हो जाता है।
अभिधानविशेषश्चेत् स्वस्मिनर्थे च निश्चयम्। कुर्वन्दृष्टः स्वशक्त्यैव लिंगाद्योंपि तादृशः ॥ २४ ॥ शाद्वस्य निश्चयोर्थस्य शद्वापेक्षोस्त्वबाधितः। . लिंगजन्माक्षजन्मा न तदपेक्षोभिधीयते ॥ २५॥
कुछ दूर जाकर जैसे कोई वाचक विशेष शब्द अपनी शक्ति करके ही अपनेमें और अर्थमें निश्चय करता यदि देखा गया है यानी पहिले अर्थ निश्चयके लिये शब्दकी आवश्यकता है। और पिछला शब्द अपना और अर्थका दोनोंका निर्णय करा देता है, जैसे कि दीपक स्वार्थोका प्रकाशक है। आचार्य कहते हैं कि तब तो उस शब्दके समान ही अपनी गांठकी सामर्थ्यसे ही वैसे हेतु आदिक अर्थ भी वाचक शब्दोंके विना तिस प्रकारका निर्णय करा देवेंगे। प्रत्येक निश्चयको करने में विशेष शद्वोंका पुंछल्ला व्यर्थ क्यों लगाया जाय । हां, शब्दको सुनकर उत्पन्न हुआ अर्थोका निर्णय तो भले ही बाधारहित होता हुआ शद्बकी अपेक्षा रखनेवाला मान लिया जाय । किन्तु ज्ञापक हेतुसे उत्पन्न हुये निर्णय ( अनुमान ) और इन्द्रियोंसे उत्पन्न हुये निर्णय ( प्रत्यक्ष ) को तो उस शब्दकी अपेक्षा रखनेवाला नहीं कहा जा सकता है।
ततः प्रत्यक्षमास्थेयं मुख्यं वा देशतोपि वा। .. स्यानिर्विकल्पकं सिद्धं युक्त्या स्यात्सविकल्पकं ॥ २६ ॥ सर्वथा निर्विकल्पत्वे खार्थव्यवसितिः कुतः । सर्वथा सविकल्पत्वे तस्य स्याच्छद्वकल्पना ॥ २७ ॥
तिस कारण यह विश्वासपूर्वक निश्चय कर लो कि मुख्यप्रत्यक्ष अथवा एक देशसे भी विशद हो रहा सम्व्यवहार प्रत्यक्ष ये दोनों ही कथांचत् निर्विकल्पक सिद्ध हैं और युक्तिसे कथांचत् सविकल्पक भी सिद्ध हैं। यानी संकेतस्मरण, वाचक शब्द जोडना आदिक कल्पनाओंसे रहित प्रत्यक्ष निर्विकल्पक है और स्पष्टरूपसे स्वार्थव्यवसाय करनारूप सद्भूत कल्पना करके प्रत्यक्ष सविकल्पक भी है । सभी प्रकारोंसे यदि प्रत्यक्षको निर्विकल्पक माना जावेगा तो स्वार्थका निर्णय करना भला कैसे होगा ? स्वार्थनिर्णय करना भी तो एक कल्पना है, और यदि उस प्रत्यक्षको सर्वथा सविकल्पक स्वीकार किया जायगा तो शादबोधके समान प्रत्यक्ष ज्ञानमें भी शब्दोंकी कल्पना लग बैठेगी, ऐसा होनेपर वह प्रत्यक्षज्ञान परोक्ष हो जावेगा।