Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 3
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तत्वार्थ लोकवार्तिके प्रत्यक्षं मानसं ज्ञानं स्मृतेर्यस्याः प्रजायते । सा हि प्रमाणसामग्रीवर्तिनी स्यात् प्रवर्तिका ॥ ३२ ॥ प्रमाणत्वाद्यथा लिंगिलिंगसंबंधसंस्मृतिः।--- लिंगिज्ञानफलेत्याहुः सामग्रीमानवादिनः ॥ ३३॥ तदप्यसंगतं लिंगिज्ञानस्यैव प्रसंगतः।
प्रत्यक्षत्वक्षतेर्लिंगतकलायाः स्मृतेरिव ॥ ३४ ॥
जिस स्मृतिसे प्रत्यक्षरूप मानसज्ञान अच्छा उत्पन्न हो जाता है, वही स्मृति प्रत्यक्ष प्रमाणकी कारणसामग्रीमें वर्तती हुई प्रवर्तक मानी गयी है । अतः प्रमाणको कारणसामग्रीमें पतित होनेसे स्मृति मुख्य प्रमाण नहीं है। किन्तु गौणप्रमाण है। जिस ज्ञानकी सामग्रीमें जो स्मृति पडी हुयी है, उपचारसे वह उसी प्रमाणरूप है। जैसे कि अनुमान. द्वारा साध्यज्ञानरूप फलको उत्पन्न करनेवाली साध्य और हेतुके संबंधकी अच्छी स्मृति मुख्यप्रमाण नहीं हो रही सन्ती उपचारित प्रमाण है । प्रमाणकी सामग्रीमें पडे हुये ज्ञानोंको मुख्यप्रमाण मानना आवश्यक नहीं है। इस प्रकार कोई सामग्रीको गौणप्रमाण माननेवाले वादी कह रहे हैं । आचार्य कहते हैं कि इसका वह कहना मी असंगत है। क्योंकि यों तो अकेले अनुमानज्ञानको ही प्रमाणपनेका प्रसंग होगा । प्रत्यक्षको प्रमाणपना नष्ट हो जायगा। क्योंकि प्रत्यक्ष तो अनुमानकी सामग्रीमें पड़ा हुआ है। जैसे कि हेतु और उसका फल साध्यके संबंधको विषय करनेवाली स्मृतिको प्रमाणपना नहीं माना जाता है । अथवा स्मृतिको सामग्रीमें डालकर प्रमाणपनका उसपर अनुग्रह किया है । सामग्रीमें पडजानेसे उस स्मृतिके गांठका स्वतंत्र कार्य अन्यत्र थोडा ही चला जाता है । घटका कारण बननेके पहिले भी तो दण्ड अपनी अर्थक्रियाओंको करता है। .
यस्याः स्मृतेः प्रत्यक्षं मानसं जायते सा तदेव प्रमाणं वत्सामध्यंतर्भूतत्वतः प्रवर्तिका खार्थे यथानुमानफला संबंधस्मृतिरनुमानमेवेति । वचनसंबंधं प्रमाणमनुमानसामध्यंतभूतमपीति चेत्. प्रतिवादी कह रहा है कि जिस स्मृतिसे जो मानस प्रत्यक्ष उत्पन्न होगा वह स्मृति वही प्रमाणकी सामग्रीमें अंतर्भूत होनेके कारण स्वार्थमें प्रवृत्ति करानेवाली मानी जायगी, जैसे कि अनुमान ज्ञान है फल जिसका, ऐसी साध्य साधनोंके संबंधकी स्मृति अनुमानप्रमाणरूप ही है। इस प्रकार अनुमानकी सामग्रीमें अंतर्भूत हो रहा भी संबंधका वचन प्रमाण है, भले ही उपचारसे होय । इस प्रकार कहनेपर तो आचार्य उत्तर करते हैं कि