Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 3
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तत्त्वार्थ लोकवार्तिके
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यहां यह भले प्रकार विचारकर निश्चय करना है कि बौद्ध लोग सामान्यरूपसे यानी विशेषपनसे रहित त्रैरूप्यको हेतुका लक्षण मानते हैं ? या किसी विशेषणसे सहित हो रहे इस त्रैरूप्यको हेतुका लक्षण कहते हैं ? बताओ । पहिला पक्ष लेनेपर तो वह त्रैरूप्य हेतुका असाधारण धर्म नहीं बनता है । क्योंकि हेत्वाभासमें भी विद्यमान हो रहा है। अतः त्रैरूप्य अच्छा लक्षण नहीं है । देखिये, बुद्ध (पक्ष) असर्वज्ञ है (साध्य) वक्ता होनेसे, पुरुष होनेसे, आदि (हेतु) जैसे कि गलीमें चलनेवाला मनुष्य असर्वज्ञ है (दृष्टांत) । इस प्रकारके यहां अनुमानमें हेतुका पक्षवृत्तित्व रूप है, १ यानीं वक्तापन हेतु बुद्धमें वर्त रहा है । मुमुक्षु जनोंके लिये मोक्षका उपदेश देना बुद्धका कर्तव्य बौद्धोंने माना है । बुद्ध में पुरुषपना भी है और सपक्षमें भी हेतु विद्यमान है। २ निश्चित रूपसे असर्वज्ञ हो रहे वर्तमानकालके उपदेशकोंमें वक्तापन, पुरुषपन, विद्यमान हैं। तथा निश्चित साध्याभाववाले सर्वज्ञमें वक्तापन पुरुषपन नहीं विधमान है । ३ सर्वज्ञ जीव परमात्मा तो वक्ता अथवा पुरुष होते हुये नहीं देखें गये हैं । इस प्रकार वक्तापन और पुरुषपन हेतुमें त्रैरूप्य वर्तरहा है। तब तो मीमांसकों करके उक्त अनुमान द्वारा कहा गया बुद्धका असर्वज्ञपना ठीक हो जावेगा। किन्तु जैनों द्वारा माने गये हेतुके लक्षण अन्यथानुपपन्नत्वके विना वे दोनों हेतु असर्वज्ञपन साध्यके गमक नहीं बन पाते हैं।
विशिष्टं त्रैरूप्यं हेतुलक्षणमिति चेत् कुतो न (नु) तद(द्)विशिष्टं ।
यदि द्वितीय पक्षके अनुसार विशेषोंसे युक्त हो रहे त्रैरूप्यको हेतुका लक्षणं कहोगे तो बताओ, वह त्रैरूप्य किस विशेषणसे अविशिष्ट नहीं है ! अर्थात् त्रैरूप्यमें कौनसा विशेषण लंगाया जाता है ? बताओ।
सर्वज्ञत्वेन वक्तृत्वं विरुद्धं न विनिश्चितं । ततो न तस्य हेतुत्वमित्याचक्षणकः खयम् ॥ १२७ ॥ तदेकलक्षणं हेतोर्लक्षयत्येव तत्त्वतः। .. साध्याभावविरोधो हि हेतो न्यस्ततो मतः ॥ १२८ ॥ तदिष्टौ तु त्रयेणापि पक्षधर्मादिनात्र किं । तदभावेपि हेतुत्वसिद्धेः कचिदसंशयम् ॥ १२९ ॥
यदि विपक्षके विरुद्ध होनेपनको त्रैरूप्यका विशेषण लगाकर यों कहोगे कि बुद्धको असर्वज्ञपना साधते समय विपक्ष बनगये सर्वज्ञपनके साथ वक्तापन हेतु विरुद्ध होता हुआ विशेषरूपसे निश्चित नहीं किया गया है । अर्थात् सर्वज्ञ भी वक्ता हो सकते हैं, कोई विरोध नहीं है। तिस कारण उस वक्तापनको समीचीन हेतुपना नहीं है। इस प्रकार साभिमान बखान रहा