Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 3
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
View full book text
________________
तत्त्वार्थश्लोकवार्तिके
" निश्चितं पक्षधर्मत्वं " आदि दो वार्तिकोंका उपसंहार हुआ। अब नैयायिकों द्वारा माने गये हेतुके लक्षणपर विचार चलाते हैं।
एतेन पंचरूपत्वं हेतोलस्तं निबुध्यते ।
सत्त्वादिष्वमिजन्यत्वे साध्ये धूमस्य केनचित् ॥ १८८ ॥ इस उक्त कथन करके हेतुका पंचरूपपना लक्षण भी निरस्त कर दिया गया समझ लेना चाहिये । धूमको किसीके भी द्वारा अग्निसे जन्यपना साधने पर सत्त्व, द्रव्यत्व, आदि असत् हेतुओंमें पंचरूपपना घटित हो जाता है ।
अग्निजन्योयं धूमः सत्त्वात् द्रव्यत्वाद्वा धूमे सत्त्वादेरसंदिग्धत्वात् । तथान्वयं पूर्व दृष्टयूमेग्नि जन्यत्वेन व्याप्तस्य सत्त्वादेः सद्भावात् व्यतिरेकश्च खरविषाणादौ साध्याभावे साधनस्य सत्वादेरभावनिश्चयात् । तथात्रावाघितविषयत्वं विवादापन्ने धूमेग्निजन्यत्वस्य बायकाभावात् । तत एवासत्प्रतिपक्षत्वमनग्निजन्यत्वसाधनप्रतिपक्षानुमानासंभवादिति सिद्धं साधारणत्वं पंचरूपत्वस्य त्रैरूप्यवत् ।
यह धुआं ( पक्ष ) अग्निसे उत्पन्न हुआ है ( साध्य ) । सत्त्व होनेसे अथवा द्रव्यत्व होनेसे ( हेतु ), इस अनुमानमें दिये गये सत्त्व, द्रव्यत्व, पौद्गलिकत्त्व, हेतुओंकी संदेहरहित होकर धूमरूप पक्षमें वृत्तिता है । तथा अन्वयदृष्टन्तरूप सपक्षमें भी हेतु वर्तरहे हैं । पहिले देखे हुये धुयेंमें अग्निजन्यपनेसे व्याप्त हो रहे सत्त्व आदि हेतुओंका सद्भाव है। और विपक्षव्यावृत्तिरूप व्यतिरेक भी बन जाता है । देखिये, अग्निजन्यत्वरूप साध्यके नहीं होनेपर खरविषाण, वन्ध्यापुत्र, आदि विपक्षोंमें सत्त्व आदि हेतुओंका अभाव निश्चित हो रहा है । तिसी प्रकार चौथा रूप अबाधितविषयपना भी सत्त्वादि हेतुओंमें घट जाता है । विवादमें पडे हुये धूमरूपपक्षमें अग्निसे जन्यपनारूप साध्यका कोई दूसरा बाधकप्रमाण नहीं है। सभी धुयें आगसे उत्पन्न होते हैं। तिस ही कारण यानी पक्षमें साध्यके बाधक प्रमाणोंके न होनेसे सत्त्व आदिक हेतु सत्प्रतिपक्षपन दोषसे रहित हैं। साध्यसे विपरीत अग्निजन्यपनके अभावको साधनेके लिये किसी प्रतिपक्षी अनुमानकी सम्भावना नहीं है। इस प्रकार नैयायिकका पंचरूपपना भी बौद्धोंके त्रैरूप्यके समान हेतुका साधारण स्वरूप सिद्ध हुआ अतः हेतुका समीचीन लक्षण पंचरूपत्व नहीं हो सकता है।
- सामस्त्येन व्यतिरेकनिश्चयस्याभावादसिद्धमिति चेन्न, तस्यान्यथानुपपन्नत्वरूपत्वात् । तदभावे शेषाणामकिंचित्करत्वापत्तेस्तद्विकलस्यैव पंचरूपत्वादेरलक्षणत्वेन साध्यत्वाद्युक्तोतिदेशः।
नैयायिक यदि यों कहें कि तीसरा रूप विपक्षसे. व्यावृत्त होना यहां नहीं है। पूर्णरूपसे व्यतिरेकका निश्चयसत्त्व आदि हेतुओंमें नहीं है । अतः पंचरूपपनको साधारणपना सिद्ध नहीं हुआ।