Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 3
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तत्त्वार्थचिन्तामणिः
हंतासाधारणं सिद्धं साधनस्यैकलक्षणं ।
तत्त्वतः पावकस्येव सोष्णत्वं तद्विदां मतम् ॥ १८७ ॥
हेतुसे अभिन्न होकर रहनेवाले पक्षवृत्तिपन आदि स्वरूप तो जाने जा चुके होते हुये अनुमानके प्रयोजक हैं । हेतुके इन रूपोंको नहीं जाने जा चुकनेपर तो हेतुका अज्ञातपना इष्ट किया यानी वह हेतु अज्ञात होकर असिद्ध है । इस प्रकार बौद्धोंके कहनेपर तो हम कहेंगे कि तिसी प्रकार निश्चितपना भी चौथा हेतुका स्वरूप क्यों न हो जावे ! यदि बौद्ध यों कहें कि निश्चितपना तो हेत्वामासमें भी विद्यमान है । अतः हेतु और हेत्वाभासमें साधारणरूपसे ठहरजानेके कारण वह निश्चितपना सम्यक्हेतुका ही रूप नहीं है । तब तो हेतुके विद्यमान हो रहे पक्षधर्मत्व आदि कभी अन्य धर्मोके समान हेतुके रूप नहीं माने जाय । क्योंकि हेत्वाभासोंमें भी मिल जाते हैं । एक अविनाभाव ही हेतुका निर्दोष स्वरूप है । बौद्धोंको खेद मानना चाहिये कि वे हेतुके साधारणरूपोंको हेतुका लक्षण कह रहे हैं । इसमें अतिव्याप्ति दोष आता है । अतः वास्तविकरूपसे हेतुका असाधा. रण लक्षण एक अन्यथानुपपत्ति ही सिद्ध हुआ, जिस प्रकार कि उस लक्ष्यलक्षणको जाननेवाले विद्वा. नोंके यहां अग्निका लक्षण उष्णता सहितपना ही माना गया है।
यो यस्खासाधारणो निश्चितः स्वभावः स तस्य लक्षणं यथा पावकस्यैव सोष्णत्वपरिणामस्तथा च हेतोरन्यथानुपपन्नत्वनियम इति न साधारणानामन्यथानुपपत्तिनियमविकलानां पक्षधर्मत्वादीनां हेतुलक्षणत्वं निश्चितं तत्त्वमात्रवत् ।
जो स्वभाव जिसका असाधारण होकर निश्चित किया गया है, वह उसका लक्षण है । संपूर्ण लक्ष्योंमें रहता हुआ जो अलक्ष्योंमें नहीं व्यापता है, वह असाधारण है। जैसे कि अग्निका ही उष्ण सहितपना परिणाम होता है, अतः अग्निका लक्षण उष्णत्व है । तिसी प्रकार हेतुका लक्षण साध्यके विना हेतुका नहीं होनापनरूप अन्यथानुपपत्ति नियम है । इसका कारण अन्यथानुपपत्तिरूप नियमसे रहित होरहे और हेत्वाभासोंमें भी साधारणरूपसे पाये जा रहे पक्षवृत्तित्व, सपक्षवृत्तित्व, विपक्षव्या. वृत्ति, आदिकोंको हेतुका लक्षणपना निश्चित नहीं किया गया है। जैसे कि केवल तत्त्व ही हेतुका लक्षण नहीं है । क्योंकि तत्त्व तो पक्ष, साध्य, जीव, आदिक भी हैं । सामान्यरूपसे सत्पना भी हेतुका या किसी विशेषपदार्थका लक्षण नहीं हो सकता है । अथवा तत्पना यानी हेतुपना भी हेतुका लक्षण नहीं है । क्योंकि जैसे मनुष्य दुर्जन, सज्जन, चोर, साहुकार, क्रोधी, क्षमावान् आदि सभी प्रकारके होते हैं, उसी प्रकार हेतुओंके समान हेत्वाभासोंमें भी हेतुपना घटित हो रहा है। किन्तु अलक्ष्यमें चले जानेवाले स्वभावको लक्षण नहीं माना गया है । यहांतक बौद्धोंके द्वारा माना गया हेतुका त्रैरूप्यलक्षण अतिव्याप्त सिद्ध करदिया गया है । इस प्रकार एक सौ चौवीसवीं
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