Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 3
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तत्त्वार्थचिन्तामणिः
साध्यः पक्षस्तु नः सिद्धस्तद्धमों हेतुरित्यपि । ताहक्षपक्षधर्मत्वसाधनाभाव एव वै ॥ १६२॥
हम स्याद्वादियोंके यहां तो प्रयोगकालमें साधने योग्य जो साध्य है, वही पक्ष माना गया है। और उस साध्यका धर्म तो हेतु है, यह भी हमें अभीष्ट है, ऐसा होनेपर बौद्धोंके तिस प्रकार माने गये हेतुके पक्षवृत्तित्वरूप साधनेका निश्चयसे अभाव ही हुआ अर्थात् एकान्तरूपसे साध्यवान्को पक्ष मानकर उसमें रहनापन हेतुका रूप नहीं है ।
कथं पुनः साध्यस्य धर्मस्य धर्मो हेतुस्तस्य धर्मित्वप्रसंगादिति चेत् न, तेनाविनाभावात्तस्य धर्म इत्यभिधानात् । न हि साध्याधिकरणत्वात्साध्यधर्मः हेतुर्येन साध्यधर्मा धर्मी स्यात् । ततः साध्याविनाभावी हेतुः पक्षधर्म इति स्याद्वादिनामेव पक्षधर्मत्वं हेतोर्लक्षणमविरुद्धं स्पष्टमविनाभावित्वस्यैव तथाभिधानात् । तच्च कृत्तिकोदयादिषु साध्यधर्मिण्यसत्स्वपि यथा प्रतीतिर्विद्यत एवेति किमाकाशादिधर्मिपरिकल्पनया प्रतीत्यतिलंघनापरयातिषसंगिन्या ।।
बौद्ध प्रश्न करते हैं कि साध्य तो स्वयं धर्म है । उस धर्मका धर्म भला फिर हेतु कैसे हो सकता है ? क्योंकि यों तो उस साध्यको धर्मीपनका प्रसंग हो जायगा । धर्मीके ही धर्म हुआ करते हैं । ग्रन्थकार कहते हैं कि यह तो न कहना। क्योंकि उस साध्यके साथ हेतुका अविनाभाव होनेसे उस साध्यका धर्म हेतु है, ऐसा कह दिया जाता है । जलका घडा, अमरूदका पेड, दूधका लोटा, जोडीका एक घोडा, इस खडामकी दूसरी खडाम् इत्यादि स्थलोंपर अनेक ढंगसे धर्माधर्मव्यवस्था हो रही है । संयोगसंबंधसे पर्वतमें अग्नि रहती है। किन्तु निष्ठत्व संबंधसे अग्निमें पर्वत रह जाता है । तथा विषयता संबंध ( स्वनिष्ठविषयितानिरूपितविषयता ) से अर्थमें ज्ञान निवास करता है । किन्तु विषयिता संबंध (स्वनिष्ठविषयतानिरूपितविषयिता) से ज्ञानमें अर्थ ठहर जाता है । जन्यत्व संबंधसे बेटेका बाप है । और जनकत्व संबंधसे बापका बेटा है । समवाय संबंधसे डालियोंमें वृक्ष है। और समवेतत्वसंबंधसे वृक्षमें डालियां हैं। इसी प्रकार अविनाभाव संबंधसे साध्यमें हेतु रहता हुआ साध्यका धर्म हो जाता है । साध्यको संयोग संबंधसे अधिकरण बनाकर उसमें रहनेवाला हेतु ही साध्य धर्म बने यह कोई नियम नहीं है। जिससे कि साध्यरूपी धर्म पुनः धर्मी बन जाय, तिस कारण साध्यके साथ अविनामाव रखनेवाला हेतु ही साध्यरूप पक्षका धर्म है । ऐसी विवक्षा होनेपर स्याद्वादियोंके यहां ही पक्षमें वृत्तिपना हेतुका लक्षण विरोधरहित सिद्ध हुआ स्पष्टरूपसे अविनामावीपनका ही तिस प्रकार पक्षवृत्तित्व करके कथन किया गया है। और वैसा पक्षवृत्तिपना तो साध्यधर्मवाले अधिकरणमें नहीं वतरहे भी कृत्तिकोदय, माता पिताका ब्राह्मणपना, अधोदेशमें नदीका पूर देखना, आदि हेतुओंमें भी प्रतीतिके अनुसार
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