Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 3
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तत्वार्थचिन्तामणिः
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नन्वाकाशकालादेर्धर्मित्वे भविष्यच्छकटोदयपल्वेलादकनैर्मल्यादेः साध्यत्वे कृत्तिकोदयत्वागस्त्युदयादेहेतुत्वे पक्षधर्मत्वयुक्तस्यैव हेतुत्वमतो नापक्षधर्मत्वलक्षणो हेतुः कश्चिदिति चेत्, किपेवं चाक्षुषत्वादिः शानित्यत्वहेतुर्न स्यात् । न हि जगतो वाऽधर्मश्चाक्षुषत्वं महानसधूमः पक्षधर्मः । तथाहि-शद्धानित्ययोगि जगचाक्षुषत्वयोगित्वात् महोदधि जगन् महानसधूपयोगित्वादिति कथं न चाक्षुषत्वं शद्धानित्यत्वं साधयेत् महानसधूमो वा महोदधौ वहि ।
. बौद्ध अवधारण करते हैं कि आकाश या काल अथवा देश, जगत्, आदिको धर्मी ( पक्ष) मान लेनेपर और भविष्यमें होनेवाले रोहिणी उदय या वर्तमानमें हो रही पोखरके पानीकी निर्मलता आदिको साध्य बनानेपर तथा कृत्तिकोदयपना, अगस्त्य ताराका उदय, आदिकको हेतु करनेपर तो पक्षमें वृत्तिपनरूप लक्षणसे युक्त हो रहे हीको हेतुपना सिद्ध हुआ। इस कारण कोई भी हेतु पक्षवृत्तिपन लक्षणसे रहित नहीं है । अव्याप्ति दोष टल गया अर्थात् आकाशमें रोहिणीका उदय होवेगा। क्योंकि अब कृत्तिकाका उदय हो रहा है । अथवा इस कालमें चन्द्रमाका उदय है । अतः समुद्रजलकी वृद्धि इस समय अवश्य हो रही है । इस वनप्रदेशमें कहीं न कहीं ढाक वृक्ष है । क्योंकि इस स्थलपर ढाक वृक्षके सूखे पत्ते उडते हुये दीख रहे हैं । जगत्में यह लडका ब्रामण है। क्योंकि जगत्में इसके माता पिता ब्राह्मण थे । इस ढंगसे सभी अनुमानोंमें योग्य आकाश आदिको पक्षकल्पित कर उनमें हेतुकी वृत्ति बन जावेगी । इस प्रकार बौद्धोंके कहनेपर तो हम स्याद्वादी कहते हैं कि यों तो चाक्षुषपना, या स्पर्शन इन्द्रियजन्यज्ञानका गोचरपना आदि भी शब्दको अनित्यपना साधनेके हेतु क्यों न हो जावें ? सिद्धान्तमें पक्षमें न रहनेके कारण चाक्षुषत्व आदि हेतु असिद्ध हेत्वाभास माने गये हैं । किन्तु जगत्को पक्ष बनाकर यह हेतु पक्षमें ठहर जाता है । अथवा रसोई घरका धुआं हेतु भी समुद्र के महत्वको सिद्ध कर देवे, रसोई घरका धुआं यद्यपि रसोई घरमें रहता है, किन्तु जगत्को पक्ष बनाकर और महान् समुद्रपनको साध्य बनाकर महानसधूमकी पक्षवृत्सिता घटित हो जाती है, तब तो जगत्का धर्म चाक्षुषत्व होता हुआ भी शब्दके अनित्यत्वको किसी प्रकार सिद्ध कर देवे । अथवा रसोई घरका धुआं हेतु महासमुद्ररूप पक्षमें अग्निको साध देवे, तुम्हारे विचार अनुसार कोई रोकनेवाला नहीं है। जगत्का धर्म चाक्षुषपना नहीं है। यह नहीं समझना अर्थात् जगत् ( घटरूप आदिक ) का धर्म चाक्षुषत्व है ही। अथवा रसोई घरका धुआं भी जगतरूप पक्षका धर्म है । तिसी बातको दिखलाते हैं कि जगत् (पक्ष ) शद्वके अनित्यपनको धारनेवाला है ( साध्य )। क्योंकि नेत्र इन्द्रियजन्य प्रत्यक्षके विषयपनको धारनेवाला होनेसे ( हेतु) दूसरा अनुमान यों है कि महान् बडवानलको धारनेवाले समुद्रसे सहित जगत् (पक्ष) अग्निमान् है ( साध्य ) रसोई घरके धुआंका सम्बधी होनेसे । इस प्रकार चाक्षुषपना हेतु क्यों नहीं