Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 3
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तत्त्वार्यश्लोकवार्तिके
यदि बौद्ध यों कहें कि प्रत्यक्ष प्रमाण करके तो अस्तित्व, नास्तित्व आत्मक होता हुआअर्थ नहीं देखा गया है । इसपर हम स्याद्वादी कहते हैं कि तिस प्रत्यक्षसे फिर भाव और अभावोंको समझानेवाला विकल्पज्ञान भला कैसे उत्पन्न हो सकेगा ! बताओ । अर्थात् बौद्धोंके यहां प्रत्यक्षके द्वारा निर्विकल्पकरूपसे विषय किये गये ही अर्थोंमें निर्णयरूप विकल्पज्ञानकी उत्पत्ति मानी गयी है । तुम बौद्धोंके मतमें नीलके निर्विकल्पकज्ञानसे पीतका विकल्पज्ञान होता हुआ नहीं माना गया है। हां, भ्रांतज्ञानोंकी दूसरी बात है। भ्रान्तिसे तो चाहे जिसमें चाहे जिसका ज्ञान कर लो । भावार्थ-भ्रान्तिसे अतिरिक्तस्थलोंमें प्रत्यक्ष ज्ञानके अनुसार ही विकल्पोंकी उत्पत्ति होना बौद्धने स्वीकार किया है । उस पीछेसे होनेवाले विकल्पज्ञान करके प्रत्यक्षसे जाने गये तत्त्वोंकी व्यवस्थाको इष्ट करनेवाले बौद्धोंके यहां प्रत्यक्ष का विषयभाव आदिरूप अर्थ मान ही लिया गया है, ऐसा समझो ।
तद्वासनाप्रबोधाचेद्भावाभावविकल्पना। नीलादिवासनोरोधात्तद्विकल्पवदिष्यते ॥ १५४ ॥ भावाभावेक्षणं सिद्धं वासनोद्बोधकारणं । नीलादिवासनोरोधहेतुतदृष्टिवत्चतः ॥ १५५ ॥
उन भाव आदिकी वासनाओंके जगजानेसे यदि भाव, अभावोंका विकल्प करोगे, तब तो हमें कहना है कि नील, पीत, आदि स्वलक्षणोंका प्रत्यक्ष कर पीछे नील आदिकी लगी हुई वासनाओंका प्रबोध हो जानेसे जैसे उन नील आदिकोंका विकल्पज्ञान होना इष्ट किया गया है, उसीके समान भाव और अमावोंका प्रत्यक्ष करना ही उन भाव अमावोंके विकल्पज्ञान कराने के लिये उपयोगी बन रही वासनाओंके प्रबोध करानेका कारण है। जैसे कि नील आदिकका दर्शन उन नील आदिकी आत्मामें प्रथमसे लगी हुई वासनाओंका प्रबोधक है तिस कारण बौद्धोंके यहां निर्विकल्पक प्रत्यक्ष द्वारा भाव, अभाव आदि धर्मोका दीख जामा उनकी वासनाओंके उद्बोधका कारण सिद्ध हो गया।
यथा नीलादिदर्शनं नीलादिवासनोबोधस्य कारणमिष्टं तथा भावाभावोभयाद्यर्थदर्शनं तद्वासनाप्रबोधस्य स्वयमेषितव्यमिति भावाद्यर्थस्य प्रत्यक्षतः परिच्छेदः सिद्धः ।
जिस प्रकार नील आदिकी वासनाओंको जगानेवाला कारण नील आदिकोंका प्रत्यक्ष दर्शन माना गया है, उसी प्रकार भाव, अभाव, उभय, अवक्तव्य, आदि सात धर्मस्वरूप अर्थका प्रत्यक्ष भी उन भाव आदिकी वासनाओंके जगानेका कारण स्ववम् इष्ट करलेना पडेगा । इस प्रकार भाव आदिस्वरूप अर्थकी प्रत्यक्षप्रमाणसे ज्ञप्ति होना सिद्ध हो गया।