Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 3
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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मतिरेव स्मृतिः संज्ञा चिंता वाभिनिबोधकम् । नार्थांतरं मतिज्ञानावृतिच्छेदप्रसूतितः ॥ २ ॥
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मति, श्रुत, अवधि, मन:पर्यय और केवलज्ञान, इन उक्त पांच ज्ञानोंमें स्मृति, प्रत्यभिज्ञान, आदिकोंका संग्रह नहीं हो सकता है, ऐसी आशंका कर श्री उमास्वामि महाराज स्मृति आदिकोंको मतिज्ञानरूप समझाने के लिये इस " मतिः स्मृतिः संज्ञा चितामिनिबोध इत्यनर्थान्तरम् " सूत्रको कह रहे हैं । स्मरण, प्रत्यभिज्ञान, अथवा अनुमान, ज्ञान ये सब मतिज्ञान ही तो हैं। मतिज्ञानसे सर्वथा भिन्न नहीं हैं। क्योंकि अंतरंगकारण मतिज्ञानावरण कर्मके क्षयोपशमसे स्मृति आदिककी उत्पत्ति होती है ।
यथैव वीर्यान्तराय मतिज्ञानावरणक्षयोपशमान्मतिरवग्रहादिरूपा सूते तथा स्मृत्यादिरपि ततो मत्यात्मकत्वमस्य वेदितव्यम् ।
जिस ही प्रकार वीर्यंतराय और मतिज्ञानावरण कर्मके क्षयोपशमसे अवग्रह, ईहा, अवाय, और धारणास्वरूप मतिज्ञान उत्पन्न होता है, तिस ही प्रकार स्मृति आदिक भी तिस क्षयोपशमसे उत्पन्न होती हैं । तिस कारण इन स्मृति आदिकको मतिज्ञान आत्मकपना समझ लेना चाहिये ।
इति शद्धात् किं गृखते इत्याह
इस सूत्र में कहे गये इति शदसे क्या ग्रहण किया गया है ! ऐसी जिज्ञासा होनेपर आचार्य स्पष्ट उत्तर कहते हैं
इति शद्वात्मकारार्थादबुद्धिर्मेधा च गृह्यते ।
प्रज्ञा च प्रतिभाऽभावः संभवोपमिती तथा ॥ ३ ॥
मेदगणनारूप प्रकार अर्थवाले इति शद्वसे बुद्धि, मेघा, प्रतिमा, अभाव, सम्भवे और उपमानेका तिस ही प्रकार ग्रहण हो जाता है। सूक्ष्मतत्वोंका तत्काल विचार करनेवाली मति या इन्द्रिय और मनसे उत्पन्न हुई मतिको बुद्धि कहते हैं। बहुत दिनोंतक धारण रखनेवाली मति मेधा कही जाती है। आगामी पदार्थोंका विचार करनेवाली बुद्धि प्रज्ञा है । नवीन नवीन उन्मेष जिसमें उठते रहें उस बुद्धिको प्रतिभा कहते हैं। काइपर पदार्थोके अभावको बतानेवाले ज्ञानको अभाव प्रमाण कहते हैं। तथा किसीकी संभावनावश अर्थान्तरको जाननेबाला ज्ञान संभव है । आप्तवाक्यार्थका स्मरण कर सादृश्यको या सादृश्यावच्छिन्नको जानना उपमान है । ये सब ज्ञान मतिज्ञानके ही मेदप्रभेद हैं।
ननु च कथं मत्यादीनामयतरत्वं व्यपदेशकरणविषयप्रतिभासभेदादिति चेत्