Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 3
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तत्वार्थश्लोकवार्तिके
अप्रमाणपन दोनों ही परतः मानलेने चाहिये । परिशेषमें विचार करनेपर दोंनोकी उत्पत्ति परतः मानना समुचित होगा।
ततश्च चोदनाबुद्धिर्न प्रमाणं न चा प्रमा। आप्तानाप्तोपदेशोत्थबुद्धस्तत्त्वप्रसिद्धितः ॥ १०८ ॥ एवं समत्वसंसिद्धौ प्रमाणत्वेतरत्वयोः ।
खत एव द्वयं सिद्धं सर्वज्ञानेष्वितीतरे ॥ १०९ ॥
और तिस कारण विधिलिङन्त वेद वाक्योंसे उत्पन्न हुई कर्मकाण्डकी प्रेरिका बुद्धि प्रमाण नहीं है और अप्रमाण भी नहीं है। क्योंकि आप्त और अनाप्तके उपदेशोंसे उत्पन्न हुई बुद्धिको उस प्रमाणपन और अप्रमाणपनकी व्यवस्था हो रही है। केवल अपौरुषेय होनेसे प्रमाणपनके समान अप्रमाणपन भी प्राप्त हो सकता है । किसी भी पुरुषके प्रयत्नसे नहीं उत्पन्न हुआ घनगर्जन या उससे जन्य ज्ञान अप्रमाण प्रसिद्ध हो रहा है। इस प्रकार मीमांसकोंके यहां प्रमाणपन और अप्रमाणपन दोनों ही समान जब भले प्रकार सिद्ध हो गये तब तो सम्पूर्ण ज्ञानोंमें दोनों प्रमाणपन और अप्रमाणपन स्वतः ही बन जाने चाहिये । इस प्रकार कोई अन्य जन कटाक्ष कर रहे हैं। जो कि समुचित है। • यथा प्रमाणानां स्वतः प्रामाण्यं तथा अप्रमाणानां वनोऽपामाण्यं सर्वथा विशेषाभा. . वात् तयोरुत्पत्तौ स्वकार्ये च सामध्यंतरवग्रहणनिरपेक्षत्वोपपत्तेः प्रकारांतरासंभवादित्यपरे ।
जिस प्रकार प्रमाणज्ञानोंको स्वतः प्रमाणपना इष्ट है, उसी प्रकार अप्रमाणभूत कुज्ञानोंको स्वतः अप्रमाणपना होजाओ, सभी प्रकारोंसे कोई अन्तर नहीं है। उन दोनोंकी उत्पत्तिमें और स्वकीय कार्यमें अन्य सामग्रियोंकी तथा अपने ग्रहणकी कोई अपेक्षा नहीं हो रही है । ऐसी दशामें दूसरोंसे प्रमाणपन या अप्रमाणपन उत्पन्न करानेमें अन्य किसी प्रकारका सम्भव नहीं है । इस प्रकार कोई अन्य कह रहे हैं । इन सबके लिये हमारा वहां उत्तर है कि भिन्न भिन्न सामग्रीसे ही न्यारे न्यारे कार्य उत्पन्न हो सकते हैं । रसोईकी सामान्य सामग्री चकग, वेलन, कढाई बर्तन, आदिसे मोदक, घृतवर ( घेवर ) पेडा आदि मनोहर व्यंजन नहीं बन पाते हैं । केवल साधारण कारणोंद्वारा लापसी, खिच्चड आदि निकृष्ट भोजन भी नहीं बन सकते हैं । अतः ज्ञानको सामान्य सामग्रीसे भी भी प्रमाणपन और अप्रमाणपन नहीं उत्पन्न हो पाते हैं । गुणोकी यह सामर्थ्य है कि उनके सन्निधान होनेपर पहिलेसे ही वह ज्ञान प्रामाण्यको लिये हुये ही उत्पन्न होगा और दोषोंके सामग्रीमें पतित हो जानेपर प्रथमसे ही अप्रामाण्यको लिये हुये ही ज्ञान उत्पन्न होता है । ऐसा नहीं है कि