Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 3
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तत्वार्यलोकवातिक
उत्पादक निमित्तोंकी अपेक्षा रखता है। स्वविषयकी ज्ञप्ति करानेमें अन्य प्रमाणोंको नहीं चाहता है देखिये। वह अनुमान पक्षसत्व, सपक्षसत्व, विपक्षव्यावृत्तिस्वरूप अथवा कार्य, स्वभाव, अनुपलब्धिस्वरूप या पूर्ववत् शेषवत् सामान्यतो दृष्टरूप तीनरूपवाले लिंगके निश्चय करनेरूप अपने हेतुकी अपेक्षा करके उत्पन्न हो रहा संता किसी अन्य प्रमाणकी अपेक्षा नहीं करता है। किन्तु जो तीन स्वरूपवाले हेतुको जाननेवाले प्रमाण है, वह तो अनुमानकी उत्पत्तिका कारण ही नहीं होता है । क्योंकि व्याप्तियुक्त हेतुके जाननेमें ही वह लिंगज्ञान कृतकृत्य हो रहा है । अतः स्वार्थीको जाननेमें प्रत्यक्षके समान अनुमान भी स्वतंत्र है । अतः अपने प्रमेयकी बप्ति करनेमें वह भी मुख्य प्रमाण है। सूर्यको गति, बडापन, आदिमें झूठा ज्ञान करानेके कारण प्रत्यक्षका न्याय अनुमान प्रमाणके न्यायालयमें होता है और प्रत्यक्षज्ञानको बाधित होना पड़ता है । अपने भूत भविष्यत्के प्रत्यक्षों और अन्य प्राणियोंके प्रत्यक्षोंका छप्रस्थोंको ज्ञान होना अनुमानसे ही साध्य कार्य है।
यदप्यभ्यधापि, प्रत्यक्षं मुख्यं प्रमाणांतरजन्मनो निमित्तत्वादिति तस्विरूपलिंगादिनानैकांतिक। यदि पुनर्यस्यासंभवेऽभावात् प्रत्यक्षं मुख्यं तदानुमानमपि तत एव विशेषाभावात् । तदुक्तं-" अर्थस्यासंभवे भावात् प्रत्यक्षेपि प्रमाणता । प्रतिबद्धस्वभावस्य तद्धेतुत्वे समं द्वयम्" इति ।
तथा जो भी चार्वाकोंने यह कहा था कि प्रत्यक्ष ही मुख्य है। क्योंकि अन्य प्रमाणोंके जन्म देनेका वह निमित्त है । इसपर हम बौद्ध कहते हैं कि इस प्रकार वह हेतु त्रिरूपलिंग, सादृश्यज्ञान, संकेतज्ञान, व्याप्ति, आदिकसे व्यभिचारी हो जाता है । ये लिंग आदिक अनुमान आदि प्रमाणोंकी उत्पत्तिके कारण हैं। किंतु चार्वाकोंके यहां मुख्यप्रमाण तो नहीं माने गये हैं। यदि फिर चार्वाक यों कहें कि वस्तुभूत अर्थके न होनेपर प्रत्यक्षप्रमाण नहीं उत्पन्न होता है। अतः प्रत्यक्षप्रमाण मुख्य है । तब तो अनुमान भी तिस ही कारण यानी अर्यके न होनेपर नहीं होनेसे मुख्यप्रमाण हो जाओ । कोई विशेषता नहीं है । वही हमारे बौद्धोंके यहां कहा है कि अर्थके नहीं विद्यमान होनेपर हुये प्रत्यक्षमें भी प्रमाणताका अभाव है और ज्ञानका अर्थके साथ अविनामाव संबंध रखने स्वभावको यदि प्रमाणपनेका हेतु माना जायगा तब तो दोनों प्रत्यक्ष और अनुमान समान कोटिके प्रमाण हैं । अर्थात् खलक्षण क्षणिकपन आदि वस्तुभूत अर्थोके होनेपर ही उत्पन्न होनेसे प्रत्यक्ष और अनुमान दोनोंको प्रमाणपना एकसा है।
संवादकत्वाचन्मुख्यमिति चेत् तत एवानुमानं न पुनःभ्यामर्थ परिच्छिप प्रवर्तमानोर्थक्रियायां विसंवाद्यते। ___सफलप्रवृत्तिका जनक हो जानारूप सम्वादकपनसे यदि उस प्रत्यक्षको मुख्य कहोगे तब तो तिस ही सम्वादकपनेसे अनुमान भी मुख्य हो जाओ। दोनों प्रत्यक्ष और अनुमान प्रमाणोंसे