Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 3
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तत्वार्थश्लोकवार्तिके
प्रत्यक्षोंका आपने नियम किया है । आचार्य कहते हैं कि यह किसीका कहना सुंदर नहीं है। क्योंकि इंद्रियों से अतिक्रान्त प्रत्यक्षका स्वसंवेदन हो रहा है। कोई विरोध नहीं है। तथा एक देशसे विशदपना इन्द्रियप्रत्यक्षोंमें भी विद्यमान है । इस कारण व्यवहारकी प्रसिद्धिसे अवग्रह आदिक भी प्रत्यक्षरूप हैं । भावार्थ-मुख्यरूपसे तो अवधि आदिक तीन ही प्रत्यक्ष हैं। .हां, थोडा विशदपना होनेसे इन्द्रिय प्रत्यक्ष मी परीक्षामुख आदि न्यायके अन्य ग्रन्थोंमें सांव्यवहारिक प्रत्यक्षमान लिये गये हैं । वस्तुतः वे परोक्ष हैं । अतः अतीन्द्रिय प्रत्यक्ष ही प्रत्यक्ष हैं । देखिये, इन्द्रियोंके विना ज्ञानका स्वसंवेदन प्रत्यक्ष हो रहा है।
प्रत्यक्षमेकमेवोक्तं मुख्यं पूर्णेतरात्मकम् । अक्षमात्मानमाश्रित्य वर्तमानमतींद्रियम् ॥ १८४ ॥ परासहतयाख्यातं परोक्षं तु मतिश्रुतम् ।
शब्दार्थश्रयणादेवं न दोषः कश्चिदीक्ष्यते ॥ १८५॥
पूर्ण प्रत्यक्ष केवलज्ञान तथा अपरिपूर्ण प्रत्यक्ष अवधि और मनःपर्ययस्वरूप, ये सब एक ही प्रत्यक्षप्रमाण मुख्य कहा गया है । क्योंकि अक्ष यानी आत्माको ही आश्रय लेकरके वह प्रवर्तता है। अतः इन्द्रियोंसे अतिक्रान्त अवधि आदि तीन ज्ञान तो पर इन्द्रिय, आलोक, हेतु, शब्द, आदिकी सहकारितासे नहीं होते हुये मुख्य प्रत्यक्ष कहे गये हैं। तथा मति और श्रुत तो मुख्य रूपसे परोक्ष माने गये हैं । इस प्रकार शब्द संबंधी न्याय और अर्थसम्बन्धी न्यायका आश्रय लेने से कोई भी दोष नहीं दीखता है।
- प्रत्यक्षं विशदं ज्ञानं विधेति ब्रुवाणेनापि मुख्यमतींद्रियं पूर्ण केवलमपूर्णमवधिज्ञानं मनापर्ययज्ञानं चेति निवेदितमेव, तस्याक्षमात्मानमाश्रित्य वर्तमानत्वात् । व्यवहारतः पुनरिंद्रियप्रत्यक्षमनिंद्रियप्रत्यक्षमिति वैशद्यांशसद्भावात् । ततो न तस्य सूत्रव्याहतिः। . श्रुतं प्रत्यभिज्ञादि च परोक्षमित्येतदपि न सूत्रविरुद्धं, आधे परोक्षमित्यनेन तस्व परीक्षत्वप्रतिपादनात् ।
विशदज्ञान प्रत्यक्ष है, वह तीन प्रकार है, इस प्रकार कहनेवाले स्याद्वादी करके भी मुख्य रूपसे अतीन्द्रिय और पूर्णविषयोंको जाननेवाला केवलज्ञान है, तथा अपूर्ण विषयोंको जाननेवाला अवधिज्ञान और मनःपर्ययज्ञान अतीन्द्रिय प्रत्यक्ष हैं, यह निवेदन कर ही दिया गया समझो। क्योंकि वह अतीन्द्रिय प्रत्यक्ष अकेले आत्मारूप अक्षका आश्रय लेकर प्रवर्त रहा है । हां, व्यवहारसे फिर पांच इन्द्रियोंसे उत्पन्न हुये प्रत्यक्ष और मनसे उत्पन्न हुये प्रत्यक्ष भी हैं। क्योंकि एक देशसे विशदपना