Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 3
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तत्त्वार्यश्लोकवार्तिक
बैसी ही समझ लेना । क्योंकि उस अनुमानके उत्थापक व्याप्तिस्मरण और लिंगके प्रत्यभिज्ञानको भी पुनः अनुमानरूप कहना आवश्यक होगा। इस ही प्रकार तीसरे चौथे आदि अनुमानमें स्मरण, प्रत्यभिज्ञानरूप अनुमानोंकी अभिलाषा बढ़ती ही जायगी। स्मृति आदिको अनुमान, उपमान, अर्थापत्तिस्वरूप माननेसे अनवस्था दोष स्पष्ट दिखला दिया है।
कथमभावप्रमाणरूपत्वे स्मृत्यादीनां सदंशे प्रवर्तकत्वं विरुध्यत इति चेत्, अभावममाणस्यासदंशनियतत्वादिति इमः। न हि तदादिभिस्तस्य सदंशविषयत्वमभ्युपगम्यते । सामर्थ्यादभ्युपगम्यत इति चेत्, प्रत्यक्षादेरसदंशविषयत्वं तथाभ्युपगम्यतां विशेषाभावात् । एवं चाभावप्रमाणवैयर्थ्यमसदंशस्यापि प्रत्यक्षादिसमाधिगम्यत्वसिद्धः।
मीमांसक पूछते हैं कि आप जैनोंने पूर्वमें कहा था कि स्मृति आदिको अभाव प्रमाणस्वरूप माननेपर सदरूपभाव अंशमें प्रवृत्ति करादेनेपनका विरोध है, सो बताओ कि स्मृति आदिकोंको अमाव प्रमाणरूप माननेपर भाव अंशमें प्रवृत्ति करादेना कैसे विरुद्ध पडता है ! आचार्य कहते हैं कि इस प्रकार पूछनेपर तो हम धडल्ले के साथ यह उत्तर कहते हैं कि आप मीमांसकोंने अभाव प्रमाणको असद्रूप अभाव अंशमें नियत हो रहा माना है । उस अभाव प्रमाणको माननेवाले मीमांसक वादियोंकरके उस अभाव प्रमाणका विषय कथमपि भाव अंश नहीं स्वीकार किया गया है। ऐसी दशामें अभावप्रमाणरूप स्मृति आदिकसे काष्ठासन, धूम आदिको जानकर भावमें प्रवृत्ति कैसे हो सकेगी ! यदि आप मीमांसक यों कहें कि अभाव प्रमाण मुख्यरूपसे वस्तुके असत् अंशको जानता है, और सत् अंशके विना रीता असत् अंश ठहर नहीं पाता है । इस सामर्थ्यसे अभाव प्रमाणद्वारा भाव अंशका जानना भी हमें स्वीकृत है, इस प्रकार कहनेपर तो हम स्याद्वादी कहेंगे कि तिस प्रकार सामर्थ्य होनेसे प्रत्यक्ष अनुमान आदि पांच भावग्राही प्रमाणोंको भी असत् अंशका विषय करलेनापन मान लिया जाय कोई अन्तर नहीं है । और इस प्रकार व्यवस्था होनेपर तो छठे अभाव प्रमाणका मानना व्यर्थ हुआ। क्योंकि प्रत्यक्ष आदि प्रमाणोंसे ही असत् अंशका भी भले प्रकार अधिगम योग्य हो जाना सिद्ध हो गया है । अर्थात-अभाव प्रमाण माननेका प्रयोजनभावप्रमाणोंसे ही भले प्रकार सध गया।
साक्षादपरभावपरिच्छेदित्वानाभावप्रमाणस्य वैयर्थ्यमिति चेत्, सहि स्मृत्यादीनामभावप्रमाणरूपाणां साक्षादभावविषयत्वात्सदंशे प्रवर्तकत्वं कथं न विरुदं । ततो नोपमानादिषु स्मृत्यादीनामंतर्भाव इति प्रमाणांतरत्वसिद्धेः सिदा खेष्टसंख्याक्षतिः चतुःपंच. षट्प्रमाणाभिधायिनाम् ।
- अभाव प्रमाण साक्षात् यानी अव्यवहितरूपसे अन्य भावोंका परिच्छेदी न होकर अभावका परिच्छेदक्त है । और प्रत्यक्ष आदिक प्रमाण तो भावको जानकर पीछे परम्परासे अभावको जानने