Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 3
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तत्वार्थचिन्तामणिः
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तिन पांच ज्ञानोंको सूत्रकार स्वयं कण्ठोक्त रूपसे इष्ट भेदों में विभक्त करने के लिये सूत्र कहतें हैं ।
आद्ये परोक्षम् ॥ ११ ॥
आदिमें होनेवाले या सूत्रमें पहिले उच्चारण किये गये मतिज्ञान और श्रुतज्ञान ये दो परोक्ष प्रमाण हैं ।
अमादात्मनः परावृत्तं परोक्षं ततः परैरिंद्रियादिभिरूक्ष्यते सिंच्यतेभिवर्ध्यत इति परोक्षं । किं पुनस्तत्, आद्ये ज्ञाने मतिश्रुते ।
जो ज्ञान अक्ष यानी आत्मासे परावृत्त है वह परोक्ष है। अर्थात् - आत्माको गौण कारण मानकर उससे न्यारे इन्द्रिय, मन, आदि कारणोंसे ऊक्षित होता है, सींचा जाता है, पुष्टिकर बढाया जाता है, इस प्रकार निरुक्तिसे साधा गया परोक्ष शद्व है । वह परोक्ष शद्वका वाध्य दूसरोंसे बढाया गया फिर क्या पदार्थ है ? इस प्रकार उद्देश्य दलकी जिज्ञासा होनेपर आदि के दो ज्ञान मति और श्रुत हैं, यह उत्तर है ।
कृतस्वयोराद्यता प्रत्येयेत्युच्यते ।
उन मति आर श्रुत दोनोंको आदिमें होनापन कैसे समझ लिया जाय ? चाहे लाखों, करोडों कितनी ही वस्तुयें क्यों न हों, उनकी आदिमें एक ही वस्तु कही जा सकती है। यहां पांचमे ही दोको आदिमें हो जानापना कैसे हो गया ? ऐसा प्रश्न होनेपर अब उत्तर कहा जाता है। आद्ये परोक्षमित्याह सूत्रपाठक्रमादिह ।
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ज्ञेयाद्यता मतेर्मुख्या श्रुतस्य गुणभावतः ॥ १ ॥ द्विवचनान्त आधे शब्द है " मतिश्रुतावधिमनः पर्ययकेवलानि "" ज्ञानम् इस सूत्र के पढे जाने क्रमसे यहां आदिके दो ज्ञान परोक्ष हैं, ऐसा प्रन्थकार कहते हैं। इस कारण मतिज्ञानको मुख्य आद्यपना है और उसके निकट होनेके कारण श्रुतज्ञानको गौणरूपसे आधपना है । प्रथमाधे प्रथमसदेशस्य " आदिमें कहे गये अकेलेको यदि दोपना यदि बाधित है, तो उसके निकट कहे गये दूसरेको मिलाकर दोपनेका निर्वाह करलिया जाता है, ऐसा व्यवहार प्रसिद्ध है । " अन्त्यबाधे अन्त्यसदेशस्य " ऐसी भी परिभाषा व्याकरणमें मान्य की गयी है।
यस्मादाद्ये परोक्षमित्याह सूत्रकारस्तस्मान्मत्यादिसूत्रपाठक्रमादिहायता ज्ञेयाः । सा च मतेर्मुख्या कथमप्यनाद्यतायास्तत्राभावात् श्रुतस्याद्यता गुणीभावात् निरुपचरिताद्यसामीप्यादाद्यत्वोपचारात् । अवध्याद्यपेक्षयास्तु तस्य मुख्याद्यतेति चेत् न, मनः पर्ययाद्यपेक्षया बधेरप्याद्यत्वसिद्धेर्मस्यनध्योर्ब्रहणप्रसंगात् द्वित्वनिर्देशस्याप्येवमविशेषात् ।
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