Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 3
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तामाग
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चार्वाकोंकर के प्रत्यक्ष मी प्रमाण क्यों पुष्ट किया जा रहा है ? इस बातका आप स्वयं कुछ कालतक चितवन कीजिये, तब उत्तर देना । अर्थात् इसका उत्तर तुम नहीं दे सकोगे । सदा चिन्तामें ही डूबे रहोगे ।
प्रत्यक्षमनुमानं च प्रमाणे इति केचन ।
तेषामपि कुतो व्याप्तिः सिध्येन्मानांतराद्विना ॥ १५३ ॥
कोई कह रहे हैं सूत्रमें " प्रमाणे " यह द्विवचन ठीक है । प्रत्यक्ष और अनुमान ये दो प्रमाण हैं । चार्वाकोंके ऊपर आये हुये दोषोंका अनुमान प्रमाण मान लेनेसे निवारण हो जाता है । अब आचार्य कहते हैं कि उन बौद्ध या वैशेषिकों के यहां भी अन्य तर्कप्रमाणको माने विना साध्य और साधनकी व्याप्ति कैसे सिद्ध होगी ? मावार्थ - अनुमानमें व्याप्तिकी आवश्यकता है । उसको जानने के लिये तर्कज्ञान मानना आवश्यक होगा । मिथ्याज्ञानस्वरूप तर्कसे समीचीन अनुमान नहीं सकता है।
योप्याह - प्रत्यक्षं मुख्यं प्रमाणं स्वार्थानिर्णीतावन्यानपेक्षत्वादिति तस्यानुमानं मुख्यमस्तु तत एव । न हि ततस्यामन्यानपेक्षं । स्वोत्पत्तौ तदन्यापेक्षमिति चेत्, प्रत्यक्षमपि तत्स्वनिमित्तमक्षादिकमपेक्षते न पुनः प्रमाणमन्यदिति चेत्, तथानुमानमपि । न हि तत्त्रिरूपलिंगनिश्चयं स्वहेतुमपेक्ष्य जायमानमन्यत्प्रमाणमपेक्षते । यत्तु तत्त्रिरूपलिंगग्राहि प्रमाणं तदनुमानोत्पत्तिकारणमेव न भवति, लिंगपरिच्छित्तावेव चरितार्थत्वात् ।
प्रत्यक्ष और अनुमान दो प्रमाणोंको माननेवाले वैशेषिक या बौद्ध कुछ देरतक अपना सिद्धांत पुष्ट कर रहें हैं कि जो भी चार्वाकवादी यों कह रहा है कि प्रत्यक्षज्ञान ही अकेला मुख्य प्रमाण है। क्योंकि प्रत्यक्षको स्व और अर्थके निर्णय करनेमें अन्य ज्ञानोंकी अपेक्षा नहीं है । उस चार्वाक के यहां अनुमान प्रमाण तिस ही कारण यांनी स्व और अर्थके निर्णय करनेमें अन्यकी अपेक्षा न पडने के कारण मुख्य प्रमाण हो जाओ । वह अनुमान उस स्व और अर्थके निर्णय करनेमें अन्यकी अपेक्षा नहीं रखता है । यदि कोई यों कहे कि वह अनुमान अपनी उत्पत्तिमें तो अन्य हेतु, व्याप्ति
कहेंगे कि यो तो
ज्ञान, पक्षवृत्तिता, आदिकी अपेक्षा रखता है । ऐसा कहनेपर तो हम बौद्ध प्रत्यक्ष भी अपनी उत्पत्ति में अन्य कारणोंकी अपेक्षा रखता है। हां, प्रत्यक्ष के उत्पन्न हो जानेपर स्त्रार्थके निर्णय करनेमें वह अन्यकी अपेक्षा नहीं रखता है, तैसा अनुमान भी तो है । इसपर चार्वाक यदि यों कहें कि वह प्रत्यक्ष अपने निमित्त कारण इन्द्रिय, आलोक आदिकी अपेक्षा रखता है । किन्तु फिर दूसरे प्रमाणोंकी अपेक्षा नहीं रखता है। इस प्रकार कहनेपर तो हम वैशेषिक कहेंगे किं यों सभी कार्य अपनी उत्पत्तिमें कारणोंकी अपेक्षा रखते हैं । तिस प्रकार अनुमान भी अपने