Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 3
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तत्वार्थचिन्तामणिः
तर्कश्चैवं प्रमाणं स्यात्स्मृतिः संज्ञा च किं न क ।
मानसत्वाविसंवादाविशेषान्नानुमान्यथा ॥१६८॥ - इस प्रकार तुम बौद्धोंके यहां व्याप्तिको जाननेवाला तर्क क्यों नहीं प्रमाण हो जावेगा ? तथा स्मृति और प्रत्यभिज्ञान भी क्यों नहीं प्रमाण हो जायेंगे ? क्योंकि मनसे उत्पन्न होनापन और सम्बादीपनकी अपेक्षा कोई विशेषता नहीं है । अन्यथा यानी अविसम्बादी होते हुये भी मन इन्द्रिय जन्य ज्ञानोंको प्रमाणपना यदि न मानोगे तो आपका माना हुआ अनुमान भी प्रमाण न हो सकेगा, अनुमान भी आपके मत अनुसार सम्वादी है और मन--इन्द्रियजन्य है।
मानसं ज्ञानमस्पष्टं व्याप्ती प्रमाणमविसंवादकत्वादिति वदन् कथमयं तर्कमेव • नेच्छेत् १ स्मरणं प्रत्यभिज्ञानं वा कुतः प्रतिक्षिपेत् तदविशेषात् । मनोज्ञानत्वाब तत्प्रमाणमिति चेनानुमानस्याममाणत्वप्रसंगात् । संवादकत्वादनुमानं प्रमाणमिति चेत्, तत एव स्मरणादि प्रमाणमस्तु । न हि ततोर्थे परिच्छिद्य वर्तमानोर्थक्रियायां विसंवाद्यते प्रत्यक्षादिवत् ।
____ मनसे उत्पन्न हुआ ज्ञान अविशद होता हुआ भी व्याप्तिको जाननेमें भी प्रमाण है, क्योंकि वह सफलप्रवृत्ति करानेवाला सम्वादक है । इस प्रकार कह रहा बौद्ध यों तर्फको कैसे प्रमाण नहीं कहना चाहेगा ! तथा स्मरण और प्रत्यभिज्ञानका कैसे किस प्रमाणसे खण्डन कर देगा ? क्योंकि वह अविशद होकर सम्बादीपना, तर्क, स्मरण, प्रत्यभिज्ञान तीनोंमें विशेषता रहित ( एकसा ) है । यदि बौद्ध यों कहें कि मनसे जन्य होनेके कारण वे तर्क आदिक तीन ज्ञान प्रमाण नहीं हैं। ग्रन्थकार कहते हैं कि सो तो न कहना । क्योंकि यों तो अनुमानको भी अप्रमाणपनका प्रसंग होगा। यदि सम्बादी होनेके कारण अनुमानको प्रमाण मानोगे तो तिस ही कारण स्मरण आदिक भी प्रमाण हो जाओ । उन स्मरण आदिकसे भी अर्थकी परिच्छित्ति कर प्रवर्त्तनेवाला पुरुष अर्थक्रियामें धोखा नहीं खा जाता है । जैसे कि प्रत्यक्ष और अनुमानसे जल आदि अर्थोको जानकर वस्तुभूत स्नान, पान, आदिक अर्थक्रियायें निधडक हो जाती हैं, तिस ही प्रकार स्मरण आदिसे खाट, चौकी आदिका ज्ञानकर निःसंशय बैठ जाना आदि अर्थक्रियायें करली जाती हैं।
तर्कादेर्मानसेध्यक्षे यदि लिंगानपेक्षिणः ।
स्यादतर्भवनं सिद्धिस्ततोध्यक्षानुमानयोः ॥ १६९ ॥ . लिंगकी नहीं अपेक्षा करनेवाले तर्क, स्मरण, प्रत्यभिज्ञान, प्रमाणोंको यदि मानस प्रत्यक्षमें गर्मित करोगें तब तो प्रत्यक्ष और अनुमान इन दो ही प्रमाणोंकी सिद्धि हो सकेगी। अन्य कोई उपाय नहीं है। और स्पष्ट न होनेसे तथा लिंगकी अपेक्षा नहीं करनेसे प्रत्यक्ष और अनुमानमें तर्क