Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 3
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
View full book text
________________
तत्वार्यलोकवार्तिके
स्वतस्तदुबलतो ज्ञानं प्रमाणं चेत्तथा न किम। प्रथमं कथ्यते ज्ञानं प्रद्वेषो निर्निबन्धनम् ॥ ११६ ॥
अनवस्था दोषके निवारण के लिये यदि उस प्रवृत्तिकी सामर्थ्यसे हुये दूसरे ज्ञानको प्रमाणपना स्वतः माना जायगा, तब तो तिसी प्रकार पहिला ज्ञान भी क्यों नहीं स्वतः प्रमाणरूप कहा जाता है। कारणके विना ही दोनोंमेंसे किसी एकके साथ विशेष द्वेष करना समुचित नहीं है । दूसरी बात यह भी है कि आप नैयायिकोंको अपने सिद्धान्तसे विरोध लगेगा । आपने प्रवृत्तिकी सामर्थ्यसे परतः प्रामाण्य होना स्वीकार किया है।
एतेनैव सजातीयज्ञानोत्पत्ती निवेदिता । अनवस्थान्यतस्तस्य प्रमाणत्वव्यवस्थितेः॥ ११७॥ न च सामर्थ्यविज्ञाने प्रामाण्यानवधारणे । तन्निबंधनमाद्यस्य ज्ञानस्यैतत् प्रसिध्यति ॥११८॥
इस उक्त कथन करके ही सजातीय ज्ञानकी उत्पत्तिरूप प्रवृत्तिसामर्थ्यका भी निवारण कर दिया गया है । द्वितीय पक्षके अनुसार मानी गयी सजातीय ज्ञानकी उत्पत्तिमें भी अनवस्था. दोष होमेका निवेदन किया जा चुका है। क्योंकि उस दूसरे सजातीय ज्ञानको प्रमाणपना अन्य सजातीय ज्ञानसे व्यवस्थित होगा और उस झानकी प्रमाणताके लिये भी तीसरे चौथे आदि सजातीय ज्ञानोंको उत्पन्न करना पड़ेगा। इस प्रकार अनवस्था हो जायगी। जबतक प्रवृत्ति सामर्थ्य विज्ञानमें प्रामाण्यका निर्णय न होगा तबतक उस प्रवृत्तिसामर्थ्यको कारण मानकर उत्पन्न होनेवाली आदिके ज्ञानकी यह प्रमाणता प्रसिद्ध नहीं हो सकती है। अन्य ज्ञानोंसे प्रवृत्ति सामर्थ्यके विज्ञानमें प्रामाण्यका निर्णय करनेपर अनवस्था हो जाती है।
न ह्यनवघारितप्रमाण्याविज्ञानात् प्रवृत्तिसामर्थ्य सिध्यति यतोनवस्थापरिहारः । प्रमाणतोर्थप्रतिपत्ती प्रवृत्तिसामादर्यवत्पमाणमित्येतद्वा भाष्यं सुघटं स्यात् प्रवृत्तिसाम
•दसिद्धात् प्रमाणस्यार्यववाघटनात् । .. नहीं निर्णात किया है प्रामाण्य जिसका, ऐसे विज्ञानसे प्रवृत्तिकी सामर्थ्य सिद्ध नहीं होती है, जिससे कि अनवस्थाका परिहार हो जाय और प्रमाणसे अर्थकी प्रतिपत्ति हो जानेपर प्रवृत्तिकी सामर्थ्य से प्रमाण अर्थवान् है, इस प्रकार यह न्यायभाष्य भले प्रकार घटित हो जावे। अर्थात्-नैयायिकोंके ऊपर अनवस्था दोष लागू रहेगा और न्यायभाष्यकार वाचस्पतिमिश्रका वचन घटित नहीं होगा।क्योंकि प्रमाणोंसे नहीं सिद्ध किये गये प्रवृत्तिसामर्थ्यसे तो प्रमाणका अर्थवानपना नहीं घटता है।