Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 3
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तत्वार्थचिन्तामणिः
१२५
नैतत्साधु प्रमाणस्यानेकरूपत्वनिश्चयात् । प्रमेयस्य च निर्भागतत्त्ववादस्तु बाध्यते ॥ १२९ ॥
जिस ही ज्ञानको स्वांशमें स्वतः प्रमाणपना है, उस ही ज्ञानको अनभ्यास दशामें परतः प्रमाणपना कैसे होगा ! एक स्थानपर एक ही समयमें दो विरुद्ध धर्म नहीं ठहर सकते हैं। अतः विरोध हो जानेसे स्याद्वाद मत ठीक नहीं है, यह किसीका कहना प्रशस्त नहीं है । क्योंक प्रमाण ज्ञानको अनेक स्वरूपोंसे सहितपनेका निश्चय हो रहा है । तथा प्रमाणसे जानने योग्य प्रमेय पदार्थ भी अनेक स्वरूपोंको लिये हुये है । जो बौद्ध प्रमाण और प्रमेयोंको अंशोंसे रहित मानते हैं, उनका तत्त्वोंके स्वरूपरहित माननेका पक्षपरिग्रह करना तो बाधित हो जाता है। चाहे जिस पदार्थमें निःस्वरूपत्व या अनेक धर्मोसे रहितपना किसी भी प्रमाणसे जाना नहीं जाता है ।
तत्र यत्परतो ज्ञानमनभ्यासे प्रमाणताम् । याति स्वतः स्वरूपे तत्तामिति बैकरूपता ॥ १३०॥
तिन ज्ञानोंमें जो ज्ञान अनभ्यास दशामें दूसरे ज्ञापक हेतुओंसे प्रमाणपनको प्राप्त करता है, वह ज्ञानस्वरूप अंशमें स्वतः ही उस प्रमाणपनको प्राप्त कर लेता है । इस प्रकार भला एकरूपपना ज्ञानमें कहां रहा ? भावार्थ-ज्ञानमें अनेक स्वभाव विद्यमान हैं । प्रमेयके भी अनेक स्वभाव हैं । अनभ्यासदशाके ज्ञानके विषय अंशमें परतः प्रामाण्य जाना जाता है। किन्तु ज्ञान अंशमें वह स्वतः प्रमाणरूप है।
स्वार्थयोरपि यस्य स्यादनभ्यासात्प्रमाणता । प्रतिक्षणविवर्तादौ तस्यापि परतो न किम् ॥ १३१ ॥ स्याद्वादो न विरुद्धोतः स्यात्प्रमाणप्रमेययोः ।
खद्रव्यादिवशाद्वापि तस्य सर्वत्र निश्चयः ।। १३२॥
जिस वादीके यहां अनभ्यास दशा होनेसे स्त्र और अर्थमें भी प्रमाणपना परतः माना जाता है, उसके यहां भी प्रतिक्षण नवीन नवीन पर्याय आदिमें दूसरोंसे प्रमाणपना क्यों नहीं माना जावेगा। इस कारण प्रमाणतत्त्व और प्रमेयतत्त्वोंमें कथंचित् अनेक स्वरूपोंको कहनारूप स्याद्वाद सिद्धांत कैसे भी विरुद्ध नहीं होगा अथवा स्वद्रव्य, क्षेत्र, काल, भावकी अधीनतासे अस्तिपना और परकीय द्रव्य, क्षेत्र, काल, भावसे नास्तिपनेकरके भी उस स्याद्वादका सभी स्थलोंपर निश्चय हो रहा है। . केवलज्ञानमपि स्वद्रव्यादिवशात्प्रमाणं न परद्रव्यादिवशादिति सर्व कथंचित्रमाणं, तथा तदेव स्वात्मनः स्वतः प्रमाणं छद्मस्थानां तु परत इति सर्वे स्यात् स्वतः, स्यात्परतः,