Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 3
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तत्वायाचन्तामाणः
१५
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किं च प्रमाणतः प्रवृत्तिरपि ज्ञातपामाण्यादातयामाण्यादा स्वात् ।
दूसरी बात नैयायिकोंसे हम यह पूछते हैं कि जान लिया गया प्रमाणपना जिसमें ऐसे प्रमाणसे प्रवृत्ति करना मानोगे अथवा नहीं जाना गया है प्रामाण्य जिसमें ऐसे प्रमाणसे भी प्रवृत्ति हो सकेगी ? बताओ।
ज्ञातप्रामाण्यतो मानात्मवृत्तौ केन वार्यते। . परस्पराश्रयो दोषो वृत्तिप्रामाण्यसंविदोः ॥ ११९ ॥ अविज्ञातप्रमाणत्वात् प्रवृत्तिश्चेवृथा भवेत्। प्रामाण्यवेदनं वृत्ते क्षौरे नक्षत्रपृष्टिवत् ॥ १२० ॥
जान लिया गया है प्रामाण्य जिसका ऐसे प्रमाणसे यदि प्रमेयमें प्रवृत्ति होना माना जायगा तो प्रवृत्ति और प्रामाण्यक ज्ञानमें अन्योन्याश्रय दोष भला किस करके निवारित किया जा सकता है ! अर्थात् -~-प्रवृत्ति करानेवाले ज्ञानका प्रमाणपना निश्चय कर चुकनेपर उस प्रामाण्यग्रस्त ज्ञानसे प्रमेयकी प्रतिपत्ति होय और प्रमेयकी प्रतिपत्ति हो जानेपर उसमें प्रवृत्ति होनेकी सामर्थ्यसे प्रमाणपनेका निश्चय होय यह अन्योन्याश्रय दोष है। द्वितीयपक्षके अनुसार नहीं जाना गया है प्रामाण्य जिसका, ऐसे ज्ञानसे यदि प्रवृत्ति होना माना जायगा तो सर्वत्र प्रामाण्यका निश्चय करना व्यर्थ पडेगा जैसे कि बालोंके कटाचुकनेपर फिर नक्षत्रका पूछना व्यर्थ है। भावार्थ-अधिक प्यास लगनेपर परदेशमें चाहे जिस स्पृश्य अस्पृश्य व्यक्तिके घरका पानी पीलिया, पीछे पिलानेवालेका जाति, गोत्र, वर्ण पूछना जैसा व्यर्थ है, तथा स्वाति, धनिष्ठा, पुष्य आदि शुभ नक्षत्रोंमें बाल कटाना प्रशस्त है किन्तु आतुरतासे मुंडन करा चुकनेपर पुनः नक्षत्रका पूछना जैसे व्यर्थ है, उसी प्रकार अज्ञात प्रमाणपनवाले ज्ञानसे प्रवृत्ति होना माननेपर वानोंमें प्रमाणपनका निश्चय करना व्यर्थ है।
अर्थसंशयतो वृत्तिरनेनैव निवारिता । अनर्थसंशयावापि निवृत्तिर्विदुषामिव ।। १२१ ॥
यदि कोई यों कहे कि सुवर्ण, रुपया, आदि अर्थोमें संशय मानसे भी प्रवृत्ति होना देखा जा सकता है, आचार्य कहते हैं कि सो ठीक नहीं है। क्योंकि " अर्के चेन्मधु विन्देत किमर्थ पर्वतं बजे" संशयज्ञानोंसे ही प्रवृत्ति होने लगे तो प्रमाणज्ञान क्यों ढूंढा जाय ? अतः अनर्थके संशय ( सम्भावना ) से भी विद्वानोंकी अनुचित कार्योंसे जैसे निवृत्ति हो जाती है, वैसे ही इष्ट अर्थके संशयसे पदार्थोंमें प्रवृत्ति हो जाती है, यह पक्ष भी इस उक्त कथनसे निवारित करदिया गया समझलेना चाहिये । प्रेक्षापूर्वकारी पुरुष संशयसे प्रवृत्ति नहीं करते हैं।