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अपाङक्त, ) (वि.)[नत०] जो समान पंक्ति में न हो, एक जो कि नीचे की ओर जाता है तथा गदा के मार्ग अपाडवतेय विशेषतः वह व्यक्ति जो बिरादरी में अपने से बाहर निकलता है। -नः, --मम् गुदा । सम. अपाअवस्य बन्धु-बांधवों के साथ एक पंक्ति में बैठने का -द्वारम् गुदा, पवनः, -बायः प्राणवायु-जिसे अधिकारी न हो, जाति बहिष्कृत।
अपान कहते है। अपाङगः--गक: [अपाङग तिर्यक् चलति नेत्रं यत्र अप+ | अपानत (वि.) [ब० स०] मिथ्यात्व से रहित, सत्य ।
अङ्गघा , कन् च] 1. आँख की बाहरी कोर, या आंख | अपाप-पिन् (वि.) [ब० स०, णिनि वा ] निष्पाप, पवित्र की कोण ---चलापाङगां दृष्टि-श० ११२४, 2. सम्प्रदाय पुण्यात्मा। सूचक माथे का तिलक 3. कामदेव, प्रेम का देवता। अपाम (अप-जल-का संबं० ब०व०)[समास में प्रथम पद के सम-दर्शनम्,-दृष्टिः (स्त्री०)-विलोकितम,- रूप में प्रयुक्त ]-ज्योतिस (न०) बिजली, पात् वीक्षणम् तिरछी चितवन, कनखियों से देखना, पलक अग्नि और सावित्री की उपाधि, नाथः, -पतिः 1. झपकना, --देश: आंख की कोर, नेत्र (वि.) समुद्र 2. वरुण, -निषिः 1. समुद्र 2. विष्णु, -पाथस् सुन्दर कनखियों से युक्त आंखों वाला (यह प्रायः (नपुं०) भोजन, -पित्तम् अग्नि-योनिः समुद्र । स्त्रियों का विशषण है) यदियं पुनरप्यपाङगनेत्रा परि- | अपामार्गः [अप+ मज+घञ कुत्वदी| ] चिचड़ा, एक वृत्ताधमुखी मयाद्य दृष्टा ---विक्रम० १११७ ।
बूटी। अपाच) [ अपाञ्चति-अञ्च+क्विप् ] 1. पीछे की ओर | अपामार्जनम् [ अप-+म+ ल्युट्] सफाई करना, शुद्धि अपांच जाने वाला, या पीछे स्थित, 2. अमुक्त, अस्पष्ट करना, (रोग पापादिक) को दूर करना ।
3. पश्चिमी 4. दक्षिणी--क (अव्य०) 1. पीछे, पीछे | अपायः [ अप++अच] 1. चले जाना, बिदाई 2.
की ओर 2. पश्चिम की ओर या दक्षिण की ओर । वियोग-ध्रुवमपायेऽपादानम् ---पा० १।४।२४, येन जातं अपाची [अप-अञ्च+क्विन् स्त्रियाँ डीप् ] दक्षिण या प्रियापाये कादं हंसकोकिलम् ---भट्टि० ६१७५, 3. पश्चिम दिशा, इतरा-उत्तर दिशा।
ओझल होना, लोप, अभाव 4. नाश, हानि, संहार -- अपाचीन (वि.) [अपाची+ख ] 1. पीछे की ओर स्थित, करणापायविभिन्नवर्णया-रघु० ८५४२, 5. अनिष्ट, पीछे की ओर मुड़ा हुआ 2. अदृश्य, अप्रत्यक्ष-ऋक् दुर्भाग्य, विपत्ति, भय (विप० उपाय) कायः संनिहिता७।६।४ 3. दक्षिणी 4. पश्चिमी 5. विरोधी ।
पायः-हि० ४१६५, 6. हानि, क्षति । अपाच्य (वि.) [ अपाची+यत् ] पश्चिमी और दक्षिणी। अपार (वि.) [न० त०] 1. जिसका पार न हो 2. अपाणिनीय (वि.) [न० त०] 1. जो पाणिनि के नियमों असीम, सीमारहित 3. जो समाप्त न हो, अत्यधिक
के अनुकूल न हो 2. जिसने पाणिनि-व्याकरण को 4. पहूंच के बाहर 5. जिसे पार करना कठिन हो, भली भाँति नहीं पढ़ा हो, पल्लवग्राही विद्वान्, संस्कृत जिस पर विजय न पाई जा सके, -रम् नदी का का अल्पज्ञान रखने वाला।
दूसरा तट। अपात्रम् [न० त०] 1. निकम्मा बर्तन 2. (आलं.) अपार्ण (वि० [अप+अ+क्त ] 1. दूरस्थ, दूरवर्ती, 2.
अयोग्य या अनधिकारी पुरुष, दान लेने के लिए | निकटस्थ । अयोग्य 3. कुपात्र, जो उपहार दान आदि का अधिः | अपार्य । (वि.) [अपगतः अर्थः यस्मात्-ब० स०] कारी न हो। सम० -कृत्या, अपात्रीकरणम् अपार्षक 1. व्यर्थ, अलाभकर, निकम्मा, 2. निरर्थक, अनुचित तथा निर्मर्याद कर्म करना, अपात्रता, दे० अर्थहीन, ---र्थम् अर्थहीन, या असंगत बात या तर्क मनु० १११७०, -दायिन अयोग्य पुरुषों को देने (सा० शा० की दृष्टि से रचना संबंधी दोष तु० काय. वाला, -भत् (वि.) अयोग्य और निकम्मे व्यक्तियों ३३२८, समुदायार्थशून्यं यत्तदपार्थमितीष्यते) । का भरणपोषण करने वाला-प्रायेणापात्रभृद्भवति अपावरणम् [अप+आ+ + ल्युट्, क्तिन् वा ] राजा-पंच०१।
अपावृतिः (स्त्री०) 1. उद्घाटन 2. ढकना, लपेटना, अपादानम् [ अप+आ+दा+ल्युट्] 1. ले जाना, दूर
घेरना 3. छिपाना, गोपन करना। करना, अपसरण 2. (व्या० में) अपा० का अर्थ- अपावर्तनम् । [अप+आ+वृत्+ल्युट्, क्तिन् ध्रुवमपायेऽपादानम्--पा० १।४।२४ ।
अपावृत्तिः (स्त्री०) वा] 1. लौटना, पीछे हटना, अपकअपाध्वन् (पुं०) [अपकृष्टः अध्वा प्रा० स०] कुमार्ग, र्षण 2. घुमना । बुरामार्ग ।
अपाश्रय (वि.) [ब० स०] आश्रयहीन, निरवलंब, अपानः [अप+अन्+अच, अपानयति मूत्रादिकम्-अप | असहाय, -यः शरण, सहारा, जिसका सहारा लिया
+आ+नी+ड वा ] श्वास बाहर निकालना, श्वास | जाय 2. चंदोवा, शामियाना, 3. सिरहाना। लेने की क्रिया, शरीर में रहने वाले पाँच पवनों में से 'अपासंग: [अप+आ+संज+पण तरकस।
जाय
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