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त्यागोऽ स्ति द्विषन्त्याश्च न च दायापवर्तनम् --मनु० | अपवीण (वि०) [ब० स० ] जिसके पास वीणा न हो, या ९१७९
खराब वीणा हो--णा [प्रा० स०] खराब वीणा। अपवादः [ अप-व-घञ ] 1. निन्दा, भर्त्सना, कलंक अपवृक्तिः (स्त्री०) [अप+व+क्तिन् ] पूर्णता,
-लोकापवादो बलवान्मतो मे-घु० १४४०, आक्षेप निष्पन्नता, पूर्ति । लोकनिन्दा,-देव्यामपि हि वैदेह्यां सापवादो यतो जनः । अपवतिः (स्त्री०) [अप++क्तिन् ] सूराख, छिद्र,
-उत्तर० १२६, 2. सामान्य नियम को बाधित करने रंध्र। वाला विशेष नियम (विप० उत्सर्ग)---अपवादैरिवो- अपवृत्तिः (स्त्री०) [अप-+ वृत्+क्तिन् ] अन्त, समाप्ति । त्सर्गाः कृतव्यावृत्तयः परः--कु० २।२७, रघु०१५७, । अपवेधः [प्रा० स०] गलत जगह या बुरे ढंग से (मोती 3. आदेश, आज्ञा-ततोपवादेन पताकिनीपतेश्चचाल आदि में) छेद करना। निदिवती महाचमू:-कि० १४.२७, 4. निराकरण, | | अपव्ययः [प्रा० स०] अत्यधिक खर्च, अपव्यय । (वेदान्त०) मिथ्यारोपण या मिथ्याविश्वास का निरा- अपशकुनम् [प्रा० स०] असगुन, बुरा सगुन । करण,-रज्जुविवर्तस्य सर्पस्य रज्जुमात्रत्ववत्, वस्तुभूत- | अपशक (वि.) [ब० स०] निर्भय, निश्शंक, कम् ब्रह्मणो विवर्तस्य प्रपञ्चादेः वस्तुभूतरूपतोऽपदेशः (कि० वि०) निडरता के साथ। अपवाद-तारा. 5. भरोसा 6. प्रेम, घनिष्ठता।।
अपशदः-तु० अपसद ।। अपवावक) (वि.) [अप+वद्+ण्वुल, णिनि वा] 1. अपशब्दः [प्रा० स०] 1. अशुद्ध शब्द (व्या० की दृष्टि अपवादिन। कलंक लगाने वाला, निन्दक, बदनाम करने
से), भ्रष्ट शब्द (रूप और अर्थ की दृष्टि से),त वाला-मगयापवादिना माढव्येन श०२, 2. विरोध
एव शक्तिवैकल्यप्रमादालसतादिभिः, अन्यथोच्चारिताः करने वाला, एक ओर रखने वाला, निकाल देने शब्दाः अपशब्दा इतीरिताः । अपशब्दशतं माधेवाला।
सुभा० 2. ग्राम्य शब्द 3. व्या० की दृष्टि से अशुद्ध अपवारणम् ] अप+व+णिच् + ल्युट् ] 1. आच्छादन, भाषा 4. झिड़की वाला शब्द, गाली, दुर्वचन, निंदा । छिपाय, 2. ओझल होना।
अपशिरस् (वि.) [अपगतं शिरः शीर्ष वा यस्यअपवारित (भू० क० कृ०) [ अप+वृ+णिच्+क्त] | अपशीर्ष-र्थन् ।ब० स०] सिर रहित, बे सिर का।
ढका हुआ, छिपा हुआ, –तम्, अपवारितकम् छिपा | अपशुच (वि.) [ब० स०] शोकरहित, (पुं) आत्मा। हुआ या गुप्त ढंग, --तम्, अपवारितकेन,, अपवार्य
अपशोक (वि.) [ब० स०] शोकरहित,--क: अशोकवृक्ष । (अव्य०) (नाटकों में बहुधा प्रयुक्त) 'पृथक्' 'एक
अपश्चिम (वि.) [न० त०] 1. जिसके पीछे कोई न हो, ओर' अर्थ प्रकट करने वाला अव्यय (विप० प्रकाशम)
अंतिम (अधिकतर 'पश्चिम' शब्द के अर्थ में ही प्रयुक्त यह इस ढंग से बोलने को कहते हैं कि केवल वही
होता है---तु० उत्तम और अनुत्तम, उत्तर और अनुसूने जिसे कहा गया है--तद्भवेदपवारितं रहस्यं तु
त्तर),-अयमपश्चिमस्ते रामस्य शिरसि पादपङ्कजयदन्यस्य परावृत्य प्रकाश्यते, त्रिपताककरेणान्यमपवार्या
स्पर्श:--उत्तर० १. प्रसीदतु महाराजो मयानेनापश्चिन्तरां कथाम्-सा०द०६।
मेन प्रणयेन-वेणी० ६, 2. अनन्तिम, प्रथम, सर्वप्रथम अपवाहः-हनम् [अप-वह+णिच-+घञ, ल्युट् वा ] 1. |
3. चरम,-अपश्चिमामिमां कष्टामापदं प्राप्तवत्यहम् दूर ले जाना, हटाना 2. घटाना, एक राशि में से
रामा०। दूसरी राशि को निकालना।
अपश्रयः [अप+श्रि+अच] गद्दी, तकिया । अपविघ्न (वि०) [ब० स०] निर्बाध, बाधारहित-रघु० | अपश्री (वि०) [ब० स०] सौन्दर्य से वञ्चित-शि० २०३८
१११५४ । अपविद्ध (भू० क. कृ.) [अप+ व्यध्+क्त] 1. दूर | अपश्वासः-दे० अपान ।।
फेंका हुआ, त्यक्त, अस्वीकृत, उपेक्षित, दूरीकृत, मुक्त, अपष्ठम् [अप-स्था-- हाथी के अंकूश की नोक । विरहित 2. नीच, कमीना --दः, पुत्रः माता या अपष्टु (वि०) [अप+स्था+कु] 1. विरुद्ध, विपरीत, 2. पिता या दोनों से त्यागा हुआ पुत्र जिमे किसी अपरि- अननुकूल, प्रतिकुल 3. बायाँ,-छु (क्रि० वि०) 1. चित व्यक्ति ने गोद ले लिया हो, हिन्दुओं में १२ विरुद्ध, 2. असत्यतापूर्वक, 3. निर्दोषता के साथ भलीप्रकार के पुत्रों में से एक--मनु० ९।१७१, याज्ञ० भांति, ठीक तरह से। २।१३२।
अपष्ठुर-ल (वि.) [ अप+स्था+कुरच्, कुलच् वा ] अपविद्या [प्रा० स०] अज्ञान, आध्यात्मिक अज्ञान, भाया विरुद्ध, विपरीत।
या भ्रम (अविद्या), तत्त्वस्य संवित्तिरिवापविद्याम् | अपसदः [अप+स+अच्] 1. जाति से बहिष्कृत, नीच कि० १६०३२।
पुरुष, प्रायः समास के अन्त में प्रयुक्त होकर अर्थ होता
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