________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
( ५८ ) निम्नतर, 8. (न्या० में) अविस्तृत, अधिक न ढकने क्षितिज में पश्चिमी बिन्दु,--हमन (वि०) सर्दी के वाला; जब 'अपर' शब्द एक वचन में 'एक' (एक, उत्तरार्ध से संबंध रखने वाला। पहला) के सह संबंधी के रूप में प्रयुक्त होता है तब | अपरक्त (वि.) अप+ रज + क्त] 1. रंगहीन, रुधिरइसका अर्थ होता है 'दूसरा, बाद का'--एको ययौ। रहित, पीला,-श्वासापरक्ताधर:- श०६।५, 2. असचैत्ररथप्रदेशान् सौराज्यरम्यानपरो विदर्भान्-रघु० न्तुष्ट, सन्तोषरहित। ५१६०, जब यह ब० व० में प्रयुक्त होता है तो इसका अपरता-स्वम (अपर+तल, त्वलबा] दूसरा या भिन्न अर्थ होता है 'दूसरे और इसके सहसंबंधी शब्द प्रायः होना, (२४ गुणों में से एक), भिन्नता, विपर्यय, 'एके' 'केचित्' 'काश्चित्' 'अपरे' 'अन्य' आदि हैं--- आपेक्षिकता। एके समूहर्बलरेणुसंहति शिरोभिराज्ञामपरे महीभूतः- अपरातः (स्त्री०) [अप+रम्+क्तिन्] 1. विच्छेद (%3 शि०१२।४५, कुछ और,-शाखिनः केचिदध्यष्ठय- अवरति तु.) 2. असन्तोष । माइक्षुरपरेऽम्बुधो, अन्ये त्वलंधिषुः शैलान् गुहास्त्वन्ये अपरत्र (क्रि.वि.) [अपर+त्रल] दूसरे स्थान पर, और व्यलेषत, केचिदासिषत स्तब्धा भयाकेचिदपूर्णिषुः । कहीं, एकत्र या क्वचित्-अपरत्र एक स्थान पर-- उदतारिषुरम्बोधिं वानरा: सेतुनापरे-भट्टि दूसरे स्थान पर। १५।३१-३३,-र: 1. हाथी का पिछला पर 2. शत्रु,-रा अपरव: प्रा० स०] 1. झगड़ा, विवाद (संपत्ति के भोग के 1. पश्चिमी दिशा 2. हाथी का पिछला भाग 3. गर्भाशय, ___ विषय में) उमित बिना झगड़े के, बिना विवाद के गर्भ की झिल्ली 4. गर्भावस्था में रुका हुआ रजोधर्म, (किसी वस्तु को अधिकार में करते समय), 2. .-रम् 1. भविष्य 2. हाथी का पिछला हिस्सा,-रम बदनामी। (क्रि.वि.) पुनः, भविष्य में, अपरंच इसके अतिरिक्त, ।
रक्त, । अपरस्पर (वि.) ० स०-अपरंच परं च, पूर्वपदे सुश्च] अपरेण पीछे, पश्चिम में, के पश्चिम में (कर्म० या संब०
एक के बाद दूसरा, निर्बाध, अनवरत, राः सार्थाः के साथ)। सम-अग्नि (अग्नि-द्वि० व०) दक्षिण
गच्छन्ति सततमविच्छेदेन गच्छन्तीत्यर्थ:-सिद्धा। और पश्चिमी अग्नियां (दक्षिण और गार्हपत्य),
अपराग (वि०) [ब० स०] रंगहीन,-गः [न० त०] 1. ---अंगम काव्य के द्वितीय प्रकार गुणीभूतव्यंग्य के आठ असंतोष, संतोष का अभाव, अनुराग का अभाव--- भेदों में से एक भेद, काव्य. ५, इसमें व्यंग्यार्थ किसी
अपरागसमीरणे रतः-कि० २१५०, 2. विराग, शत्रुता। और का गौण अर्थ है,उदा०-अयं स रसनोत्कर्षी पीनस्त
अपराञ्च (वि.) [अपर+अञ्च+क्विप्] (राङ, राची, नविमर्दनः, नाभ्यूरुजघनस्पर्शी नीवीविलंसनः करः । यहाँ राक) दूर न किया गया, मुंह न फेरा हुआ, संमुख श्रृंगाररस करुण का अंग है;-अंत (वि०) पश्चिमी होने वाला सामने होनेवाला, (अव्य०) (--राक) के सीमा पर रहने वाला, (न्तः) 1. पश्चिमी सीमा या सामने । सम-मुख (वि.) (स्त्री०--स्त्री) 1. मुंह किनारा, अन्तिम छोर, पश्चिमी तट 2. (ब. व०) न मोड़े हुए, मह सामने किये हुए, 2. साहसपूर्ण पग सह्य पर्वत का निकटवर्ती पश्चिमी सीमा प्रदेश या
रखते हुए। वहां के निवासी-अपरान्तजयोद्यतैः (अनीकैः) रघु० अपराजित (वि.) [न० त०] जो जीता न गया हो, अजेय ४१५३, पश्चिमी लोग 3. इस देश के राजा 4. मृत्यु --स: 1. विषेला जन्तु 2. विष्णु, शिव-ता दुर्गादेवी --अन्तक:- अन्तः(ब०व०)-अपरा:,-रे,-राणि । जिसकी पूजा विजया दशमी के दिन की जाती है, एक दूसरे और दूसरे, कई, बहुत-अर्धम् उत्तरार्ध, प्रकार की औषधि जो कि ताबीज के रूप में भुजा में
—अलः दोपहर बाद, दिन का अन्तिम या समापक बांधी जाती है, 3. उत्तर-पूर्व दिशा । पहर, इतरा पूर्वदिशा,--काल: बाद का समय,-जनः : अपराव (भ०० कृ०)[अप-+-राध् + क्त] 1. जिसने पाप पश्चिम देश का बासी, पश्चिमी लोग,-दक्षिणम् किया है, किसी को कष्ट दिया है, अपराध का करने (अव्य०) दक्षिण पश्चिम में,---पक्ष: 1. मास का वाला, कष्ट देने वाला, (कर्षर्थ में भी प्रयुक्त)-कस्मिदूसरा या कृष्णपक्ष, 2. दूसरी या विपरीत दिशा, न्नपि पूजाहेऽपराद्धा शकुन्तला-श०४, 2. जो चूक प्रतिवादी (विधि में),-पर (वि.) कई एक, बहुत गया हो, निशाने पर न लगने वाला (तीर की भांति) से, विविध,-अपरपराः सार्थाः गच्छन्ति-पा०६।१।१४४ । --निमित्तादपराद्धेषोर्धानुष्कस्येव बल्गितम्-शि० सिद्धा-कई समुदाय जा रहे हैं,-पाणिनीयाः पश्चिम । २।२६ 3. जिसने उल्लंघन किया है, अतिक्रान्त,--खम् के निवासी पाणिनि के शिष्य,-प्रणेय (वि०) जो अपराध, कष्ट । दूसरों के द्वारा आसानी से प्रभावित हो सके, विधेय, | अपरादिः (स्त्री) [अप+राध्+क्तिन्] 1. दोष, अपराध, --रात्रः रात्रि का उत्तरार्ध या रात का अन्तिम पहर, 2. पाप। -लोकः दूसरी दुनिया, अगला लोक, स्वर्ग, स्वस्तिकम् । अपराषः [अप+राध+घञ्] अपराध, दोष, जुर्म, पाप
For Private and Personal Use Only