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साथ पात्र के प्रवेश को प्रकट करता है जैसा कि बिना | अपथ्य (वि०) [न० त०] 1 अयोग्य, अनुचित, असंगत, किसी भूमिका (ततः प्रविशति आदि) के, पात्र / घृणित-अकार्य कार्यसंकाशमपथ्यं पथ्यसंमितम्-रा० अकस्मात् पर्दे को उठा कर प्रविष्ट होता है)।
2. (आयु. में) अस्वास्थ्यकर, रोगजनक (जैसा कि अपद (वि.) [न० त०] 1. अनिपुण, अदक्ष, मंदबुद्धि, भोजन, पथ्यापथ्य) सन्तापयति कमपथ्यभुजं न रोगाः भोंदू, 2. जो बोलने में चतुर न हो 3. रोगी।
----हि० ३।११७, 3.बुरा दुर्भाग्यपूर्ण । सम० - अपठ (वि.) [न० त० ना + पठ-|-अच् ] पढ़ने में कारिन् (वि.) कष्टप्रद ।
असमर्थ, न पढ़ने वाला, दुष्पाठक तु०, 'अपच्'। अपदः [न० ब०] बिना पैर का, --दम् [न० त० अपणित (वि.) [न० त०] 1. जो विद्वान या बुद्धिमान् । 1. आवास या स्थान का अभाव, 2. सदोष स्थान या
न हो, मूर्ख, अनाड़ी-विभूषणं मौनमपण्डितानाम- अनुपयुक्त आवास 3. ऐसा शब्द जिसके साथ अभी भर्तृ० नो०७, 2. जिसमें कुशलता, रुचि तथा गुणों। विभक्ति-चिह्न न जुड़ा हो 4. अन्तरिक्ष । सम-अंतर की सराहना करने का अभाव हो।
(वि०) संलग्न, संसक्त, समीपस्थ (-रम्) सामीप्य, अपण्य (वि.) [न० त०] जो बिक्री के लिए न हो, संसक्तता। -जीविकार्थे चापण्ये-पा० ५।३।९१ ।
अपदक्षिणम् (अव्य०) [अव्य० स०] बाई ओर । अपतर्पणम् [ अप+ तृप्+ ल्युट् ] 1. उपवास रखना (रुग्णा- अपदम (वि.) [व० स०] आत्मसंयम से हीन । वस्था में) 2. तृप्ति का अभाव ।
अपदश (वि.) [ब० स० ] दस की संख्या से दूर । अपतानक: [ अप+तन् ।-प्रवल ] एक प्रकार का रोग अपदानम् -दानकम् [ अप दा+ल्युट् स्वार्थे कन् च ] 1
जिसमें अकस्मात् मर्छा आती है, दौरे पड़ते हैं तथा पवित्राचरण, मान्य जीवनचर्या 2. उत्तम कार्य, सर्वोत्तम पेशियों में सिकुड़न होती है।
कार्य (कदाचित् 'अवदानम्' के स्थान पर) 3. भलीअपति,-तिक (वि०) [न० ब० ] जिसका स्वामी न हो, । भांति पूर्ण रूप से किया गया कार्य, निष्पन्न कार्य । जिसका पति न हो, अविवाहित ।
| अपवार्थः [न० त०] 1. कुछ नहीं, सत्ता का अभाव 2. वाक्य अपत्नीक (वि.) [न. ब. जिसकी पत्नी न हो। में प्रयुक्त शब्दों का अर्थ न होना-अपदार्थोऽपि वाक्यार्थः अपतीर्थम् [प्रा० स०-अप्रकृष्टं तीर्थम् ) बुरा तीर्थस्थान ।
समुल्लसति-काव्य 2. 1. अपत्यम् [न पतन्ति पितरोऽनेन-नापत+यत] 1. अपदिशम् (अव्य०) [अव्य० स०] मध्यवर्ती प्रदेश में, सन्तान, बच्चे, प्रजा, संतति (मनुष्यों की और पशुओं
। परिधि के दोनों प्रदेशों के बीच ।। की), बेटा या बेटी; एक ही कुल में उत्पन्न पुत्र, पौत्र
अपदेवता [प्रा० स०] पिशाच, भूत प्रेत।। तथा प्रपौत्र आदि--अपत्यं पौत्रप्रभृति गोत्रम् ---पा०४। अपदेशः [ अप+दिश् +घञ.] 1. वक्तव्य, उपदेश, नाम २।६२,---अपत्यैरिव नीवारभागधयोचितमगैः-रघु० का उल्लेख करते हुए संकेत करना----नैष न्यायो १२५०, 2. अपत्यवाचक प्रत्यय । सम०--काम (वि०) यदातुरपदेश:-दश०६०, हेत्वपदेशात् प्रतिज्ञाया: सन्तान का इच्छुक,–पथः योनि, --प्रत्ययः अपत्य- पुनर्वचनं निगमनम्-ज्या० शा० 2. बहाना, छल, वाची प्रत्यय, --विकयिन् (वि०) सन्तान का विक्रेता, कारण, व्याज-केतापदेशन पूनराश्रमं गच्छाम:वह पिता जो धन के लालच से अपनी कन्या को भावी श० २, रक्षापदेशान्मुनिहोमधेनो:---रघु० २।८, 3. जामाता के हाथ बेच देता है; -शत्रुः 1. केंकड़ा कारणों का वर्णन, तर्क प्रस्तुत करना, भारतीय न्याय2. सांप।
वाद के पाँच अंगों में से दूसरा--हेतु-(वैशे० के अपत्रप (वि.) [ब० स०] निर्लज्ज, बेहया, ~~-पा, अनुसार) 4. निशाना, चिह्न 5. स्थान, दिशा 6. -~-~पणम् लज्जा , ह्या।
अस्वीकृति 7. प्रसिद्धि, यश 8 छल । अपत्रपिष्णु (वि०)[अप-अप-- इष्णुच् शर्मीला, लजीला। अपद्रव्यम् [प्रा० स०] बुरा द्रव्य, बुरी वस्तु । अपत्रस्त (वि०) [अप+स्+क्त ] डरा हुआ, अपभीत, अपद्वारम् [ प्रा० स०] बगल का दरवाजा, असली द्वार के तरंगापत्रस्त:--तरंगों से किचित् भीत।
अतिरिक्त कोई दूसरा प्रवेश द्वार। अपय (वि.) [न० ब०] मार्गरहित, बिना सड़क के, अपधूम (वि०) [ब० स०] जिसमें धुआं न हो, घूमरहित।
--यम् (अपन्याः) [ न० त०] जो मार्ग न हो, मार्ग अपध्यानम् [प्रा० स०] बुरे विचार, अनिष्ट चिन्तन, मन का अभाव, कुमार्ग (शाब्द०), (आलं.) नैतिक हो मन कोसना। अनियमितता या स्खलन, दुष्पथ या कुमार्ग- अपथे | अपध्वंसः [प्रा० स०] अधःपतन, गिरावट, लांछन । पदमर्पयन्ति हि श्रुतवन्तोऽपि रजोनिमीलिता:---रघु० सम० ---जः, ---जा मिश्रित पतित तथा निन्द्य जाति १।७४, । सम० ---गामिन् (वि.) कुमार्ग पर चलने ___ में उत्पन्न-मनु० १०॥४१, ४६ । बाला, विधर्मगामी।
| अपध्वस्त (वि.) [अप+ध्वंस्+क्त] 1. झिड़का गया,
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