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अभिशप्त, घृणित 2. अपूर्ण रूप से या बुरी तरह पीसा | वनुमा में सुई का उत्तर से ठीक पूर्व या पश्चिम की हुआ, 3. त्यक्त, -स्तः दुष्ट, पाजी, जिसमें बुरे भले । ओर घुमाव, क्रान्तिवलय। . की समझ न हो।
| अपमर्दः [अप+मृद्+धा] जो बुहारा जाता है, धूल, अपनपः [अप-+नी+अच् ] 1. ले जाना, हटाना, निरा- | गर्दा।।
करण करना 2. दुर्नीति या दुराचरण 3. क्षति, अप- | अपमर्शः [अप+मश+घञ्] छूना, चरना । कार-ततः सपत्नापनयनस्मरणानुशयस्फुरा-शि० | अपमानः [अप+मन+घञ] अनादर, सम्मान का न होना २।१४।
लांछन-लम्यते बुद्धचवज्ञानमपमानं च पुष्कलम्अपनयनम् [अप+नी+ल्युट] 1. ले जाना, हटाना---नाति पंच० श६३ ।
श्रमापनयनाय---श० ५।६, 2. आरोग्य देना, इलाज अपमार्गः [अप+मग+धन] छोटा रास्ता, बगल का मार्ग करना 3. ऋण परिशोध, कर्तव्य का निर्वाह ।
बुरा रास्ता। अपनस (वि०)[ब० स०] बिना नाक का, असिकौक्षेय- | अपमार्जनम् [अप-+मा +ल्युट्] 1. धोकर साफ करना, मुद्यम्य चकारापनसं मुखम्-भटि० ४।३१ ।
मांजना, साफ करना, 2. हजामत बनवाना, नाखून अपत्तिः (स्त्री०)[अप+नु+क्तिन्, घा, ल्युट् कटाना। अपनोवः नोदनम् वा] हटाना, ले जाना, नष्ट करना, | अपमुख (वि०) [बं० स०] 1. औंधे मुंह वाला 2. विरूप,
प्रायश्चित्त, (पाप का) परिशोधन-पापानामपनुत्तये कुरूप । -मनु० ११।२१५ ।
अपमूर्धन् (वि०) [ब० स०] जिसके सिर न हो, कलेवरअपपाठः [प्रा० स०] अशुद्ध पठन, बुरी तरह पढ़ना, पढ़ने । अमर० । ___ में अशुद्धि, द्वादशापपाठा अस्य जाताः ।
अपमृत्यः [प्रा० स०] 1. आकस्मिक या असामयिक मरण, अपपात्र (वि.) [ब० स० सामान्य पात्रों के उपयोग से दुर्घटना के कारण मृत्यु, 2. कोई भारी भय या रोग बंचित, नीची जाति का ।
जिससे कि रोगी (जिसके जीने की आशा न रही हो) अपपात्रितः [ पात्रभोजनाद् बहिष्कृतः ---अपपात्र-इतच् ]| आशा के विपरीत स्वस्थ हो जाता है।
किसी बड़े पाप या अपराध के कारण जाति से बहि- अपमषित (वि.) [अप+म+क्त 1. जो समझ में न ष्कृत होकर जो अपने संबंधियों के साथ सामान्य आ सके, अस्पष्ट जैसे कि कोई वाक्य या वक्तता 2. पात्रों में खान-पान के योग्य नहीं है।
जो सह्य न हो, जिसे कोई पसन्द न करे-विहितं अपपानम् [अप-+पा+ल्युट्] अपेय, बुरा पेय ।
मयाद्य सदसीदमपमृषितमच्युतार्चनम्, यस्य-शि० अपपूत (वि.) [ब० स०] जिसके नितंबों या कूल्हों की १५।४६। बनावट सुडौल न हो-तो बेढंगे कुल्हे ।
अपयशस (न०-शः) [प्रा० स०] बदनामी, कलंक, अपअपप्रजाता [अपगतः प्रजातो यस्याः ब०स०] वह स्त्री जिसका
कीर्ति-अपयशो यद्यस्ति किं मृत्युना--भर्तनी०५५। गर्भपात हो गया हो।
अपयानम् [अप.+या+ल्युट्] दूर जाना, वापिस मुड़ना, अपप्रदानम् [अप+प्रदा + ल्युट] घूस, रिश्वत ।।
भागना । अपभय-भी (वि०) निडर, निर्भय, निश्शंक-रघु०
अपर (वि.) [न.ब.] (कूछ अर्थों में 'सर्वनाम' की भांति ३१५१।
प्रयुक्त होता है) 1, अप्रतिद्वन्द्वी, बेजोड़, तु. अनुत्तम, अपभरणी [अप+4+ ल्युट+डीप] अन्तिम नक्षत्रपुंज ।
अनुत्तर 2. [न० त०] (क) दूसरा, अन्य (वि० व अपभाषणम् [अप+भाष् + ल्युट्] भर्त्सना, अपयश ।
नाम की भांति प्रयुक्त) (ख) और, अतिरिक्त (ग) अपभ्रंशः [अपभ्रंश्+घञ] 1. नीचे गिरना, पतन,---- दुसरा, और (घ) भिन्न, अन्य-मनु० १९८५, (ङ)
अत्यारूढिर्भवति महतामप्यपभ्रंशनिष्ठा--श० ४ 2. तुच्छ, मध्यम 3. किसी और से संबंध रखने वाला, भ्रष्ट शब्द, भ्रष्टाचार (अत:) अशुद्ध शब्द चाहे वह जो अपना निजी न हो (विप० स्व) 4. पिछला, बाद व्याकरण के नियमों के विपरीत हो और चाहे वह का, दूसरा, बाद में (काल और देश की दृष्टि से) ऐसे अर्थ में प्रयुक्त हुआ हो जो संस्कृत न हो 3. भ्रष्ट (विप० पूर्व), अन्तिम-रात्रेरपरः काल: निरु०, भाषा, (काव्य में) गड़रियों आदि के द्वारा प्रयुक्त जब षष्ठीतत्पुरुष समास के प्रथम पद के रूप में प्राकृत बोली का निम्नतम रूप, (शास्त्र में) संस्कृत से प्रयुक्त होता है तब 'पिछला भाग' 'उत्तरार्ध' अर्थ होता भिन्न कोई भी भाषा–आभीरादिगिरः काव्येष्वपभ्रंश है;-पक्षः मास का उत्तरार्ध, हेमंतः सर्दियों का इति स्मृता, शास्त्रेषु संस्कृतादन्यदपभ्रंशतयोदितम- उत्तरार्ध, "कायः शरीर का पिछला भाग, आदि, वर्षा, काव्यादर्श १।
शरद् बरसात या पतझड़ का उत्तरार्ध, 5. आगामी, अपमः (ज्यो० में) [अपकृष्ट मीयते--मा-क बा०] कुतु- । अगला 6. पश्चिमी-शि० ९१, कु०१११, 7. घटिया
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