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~~~~~~-सम्यक् आचार
भगवान महावीर नमस्कृतं महावीरं, केवलं दिस्टि दिस्टितं । विक्त रूपं अरू पंच, सिद्ध सिद्धं नमामिहं ॥६॥
जिनके केवल-ज्ञान-मुकर में, युगपत् दिखते तीनों लोक । कर्मों का आवरण हटा जो, शरच्चन्द्र से बने निशोक ॥ सम्यविधि से व्यक्त किन्तु जो, अशरीरी, अव्यक अरुप ।
नमस्कार करतो मैं उनको, स्वीकृत करें वीर चिद्रूप ॥ जिनके केवल ज्ञान रूपी दर्पण में तीनों लोक युगपत् दिखाई देते हैं; जो व्यक्त और अव्यक्त दोनों हैं, ऐसे उन विशुद्ध सिद्ध प्राप्त करने वाले, भगवान महावीर को मैं नमस्कार करता हूँ।
धर्म के तीन पात्र केवली नंत रूपी च, मिद्ध-चक्र नमामिहं । बोच्छामि त्रिविधं पात्रं, केवलि-दिस्टि जिनागमं ॥७॥ सिद्ध-शिला जगमगा रहे हैं कोटि कोटि जो कवल धाम ! उस पुनीततम सिद्धशशि को, मेरे सविनय कोटि प्रणाम ॥ तीन तरह के धर्म मात्र हैं, देव, शास्त्र,गुरु सौख्य सदन ।
उनकी भी मैं पूर्ण भक्ति से, करता हूँ इस क्षण वन्दन ॥ मैं उन अनन्त सिद्धों के समूह को भी नमस्कार करता हूँ, जो सिद्ध शिला पर प्रकाश की अपूर्व छटा छिटका रहे हैं। धर्म के पात्र तीन हैं (१) केवल ज्ञान के आधार. केवली (२) सर्वज्ञ के वचन, जिनवाणी (३) सर्व परिग्रह से रहित-निर्ग्रन्थ साधु; इनको वन्दन कर मैं अब इनका विश्लेवण करूँगा।