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सम्यक् आचार
एतत् क्रिया मंजुक्तं, मंमिक्तं मा धुवं । ध्यानं सुद्ध समयस्य, उत्कृष्ट सावकं धुवं ॥४४४॥ एकादश प्रतिमाओं को, सम्यक् विधि पालन करते । पंच अणुव्रत को क्रमशः, निज जीवन में आचरते ॥ दर्शनयुत हो स्वात्म-मनन के, पीते हैं जो प्याले ।
वे मानव ही सद्गृहस्थ हैं, श्रावक-कुल-उजियाले ॥ जो ग्यारह प्रतिमाओं को पालते हैं, पंचाणुव्रतों का पूर्णरूप से साधन करते हैं, सम्यक्त की उपासना में प्रति समय तल्लीन रहते हैं और आत्मा की अर्चना करने में ही अपने त्रियोग का उपयोग करते हैं, वही उत्तम और समीचीन पद के धारी उत्कृष्ट श्रावक हैं, जिन्हें क्षुल्लक या ऐलक कहा जाता है।
THIHA
Mananpipan