Book Title: Samyak Achar Samyak Vichar
Author(s): Gulabchandra Maharaj, Amrutlal
Publisher: Bhagwandas Jain

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Page 294
________________ मागम की बन्दना त्रिविध ग्रंथं प्रोक्तं च, साध न्यान मयं धुवं । धर्मार्थ काम मोष्यं च, प्राप्तं परमेष्टी नमः ॥४६१॥ आगम के हैं तीन भंद, यह कहते सिद्धालय वासी । शब्द, अर्थ, विज्ञान रूप जो तीनों हैं ध्रव अविनाशी ॥ धर्म, अर्थ और काम मोक्ष के, ये आगम ही हैं माधन । ये ही परमेष्ठी-पद-दाता, इनको शतशत अभिवादन ।। श्री सर्वज्ञ प्रभु ने आगम को तीन भागों में विभक्त किया है (१) शब्द (२) अर्थ (३) ज्ञान : ये भागम धर्म अर्थ काम और मोक्ष इन चारों पुरुषार्थों को मिद्धि कराने वाले और परमेष्ठी पर को प्राप्त करने वाले होते हैं, अत: उनको सविनय नमस्कार हो । परमानंद आनंद, जिन उक्तं माम्यतं पदं । एकोदेम उवदेमं च, जिन तारण मुक्ति पथं श्रुतं ॥४६२॥ ज्ञान और आनन्दमयी है वीतगग प्रभु की वाणी । स्वरलहरी भरते हैं जिसमें, आत्मतत्वपद-विज्ञानी ॥ आत्मतत्व का चमके, वसुधा प्रांगण में उज्ज्वल तारा । किया श्रावकाचार इसी से, मैंने यह प्रस्तुत प्याग । वीतराग प्रभु की वाणी अत्यन्त ही आनन्दमयी है. जिसमें पद पद पर आत्मतत्व के दर्शन होते हैं। वह भात्म-पद संसार को अपने प्रकाश से आलोकित करे, केवल इसी ध्येय से मैंने यह पुण्य ग्रन्थ प्रस्तुत किया है।

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