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सम्यकज्ञान ही मुक्ति का मार्ग है
आत्मा के स्वभाव को समझने का मार्ग सीधा और सरल है। यदि यथार्थ मार्ग को जानकर उस पर धीरे धीरे चलने लगे तो भी पंथ कटने लगे, परन्तु यदि मार्ग को जाने बिना ही आंखों पर पट्टी बांधकर तेली के बैल की तरह चाहे जितना चलता रहे तो भी वह घूम घामकर वहीं का वहीं बना रहेगा। इसी प्रकार स्वभाव का सरल मार्ग है। उसे जाने बिना ज्ञान नेत्रों को बन्द करके चाहे जितना उलटा सीधा करता रहे और यह माने कि मैंने बहुत कुछ किया है; परन्तु ज्ञानी कहते हैं कि भाई तूने कुछ नहीं किया, तू संसार का संसार में ही स्थित है, तू किंचित् मात्र भी आगे नहीं बढ़ सका। तूने अपने निर्विकार ज्ञानस्वरूप को नहीं जाना, इसलिये तु अपनी गाड़ी को दौड़ाकर अधिक से अधिक अशुभ से खींचकर शुभ में ले जाता है और उसी को धर्म मान लेता है, परन्तु इससे तो तृ घूम घामकर वहीं का वहीं विकार में ही आ जमता है। विकार-चक्र में चक्कर लगा कर यदि विकार से छूटकर ज्ञान में नहीं आया तो तूने क्या किया ? कुछ भी नहीं। -'सम्यग्दर्शन'