Book Title: Samyak Achar Samyak Vichar
Author(s): Gulabchandra Maharaj, Amrutlal
Publisher: Bhagwandas Jain

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Page 314
________________ सम्यक्त्व माहात्म्य . सम्यक्त्वहीन जोव यदि पुण्य सहित भी हो तो भी ज्ञानीजन उस पापी करते हैं। क्योंकि पुण्य-पाप रहित म्वरूप की प्रतीति न होने सं पुण्य के फल की मिठास में पुण्य का व्यय करके, स्वरूप का प्रतीति रहित होने से पाप में जायगा। . सम्यकत्व सहित नरकवास भी भला है और सम्यकत्वहीन होकर देवलोक का निवास भी शोभास्पद नहीं होता। • संसार रूपा अपार समुद्र से रत्नत्रय रूपी जहाज को पार करने के लिये सम्यग्दर्शन चतुर ग्वेवटिया ( नाविक) के समान है। . जिस जीव के सम्यग्दर्शन है वह अनंत सुख पाता है और जिस जीव के सम्यग्दर्शन नहीं है वह यदि पुण्य करे तो भी अनंत दुःखा को भागता है। इस प्रकार सम्यग्दर्शन की अनेकविध महिमा है, इसलिये जा अनंत सुख चाहते हैं उन समस्त जीवों को उसे प्राप्त करने का सर्व प्रथम उपाय सम्यग्दर्शन ही है।

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