Book Title: Samyak Achar Samyak Vichar
Author(s): Gulabchandra Maharaj, Amrutlal
Publisher: Bhagwandas Jain

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Page 327
________________ सम्यक विचार =[ ३३ जे शुद्ध दृष्टी सम्यक्त्व युक्तं, जिन उक्त सत्यं सु तत्वार्थ साधं । आशा भय लोभ स्नेह त्यक्तं, ते माल दृष्टं हृदय कंठ रुलितं ॥२४॥ जो स्याद्वादज्ञ, सम्यत्व-सम्पन्न, शुचि, शुद्धदृष्टी, निज 'आत्मध्यानी । तत्वार्थ के सार को जानते नित्य, ध्याते पतित-पावनी जैन वाणी ॥ आशा, भय, स्नेह औ लोभ से जो, बिलकुल अछूते हैं स्वात्मचारी । वे ही हृदय कंट में नित पहिनते, है आत्म-गुणमाल यह सौख्यकारी ॥ हे श्रेणिक ! इस अध्यात्ममाला को केवल वही व्यक्ति प्राप्त कर सके जो दर्शन, ज्ञान और आचरण से संयुक्त "शुद्ध दृष्टी" थे, सम्यक्त्व से परिपुण थे। इम मालिका के साथ जो रहस्य है वह यह है कि केवल सम्यक्त्व से परिपूर्ण शुद्ध दृष्टि पुरुष ही इसे प्राप्त करने में ममर्थ हो सके हैं। जिन्हें करुणामयी जिनवाणी के वचनों पर अटूट श्रद्धा होती है, तत्त्वार्थ के सार श्रात्मा के जो पूर्णरूपेण ज्ञाता होते हैं तथा आशा, भय, लोभ और स्नेह से जिनका हृदय दूर बहुत दूर हो जाता है ऐसे नररत्नों के हृदय ही इस मालिका से सुशोभित होते हैं, हुए हैं, और होवेंगे। जिनस्य उक्तं जे शुद्ध दृष्टी, सम्यक्त्वधारो बहुगुणसमृद्धिम् । ते माल दृष्टं हृदय कंठ रुलितं, मुक्ती प्रवेशं कथितं जिनेन्द्रः ॥२५॥ "जिन उक्त-तत्वों को जानते हैं, जो पूर्ण विधि से सम्यक्त्व धारी । आत्म-समाधि सा मिल चुका है, जिनको समुज्ज्वल-तम रत्न भारी ।। उनके हदय-कंठ पर ही निरंतर, किल्लोल करतीं ये माल ज्ञानी ! वे ही पुरुष मुक्ति में राज्य करते, कहती जगतपूज्य जिनराज-ज्ञानी ॥" श्री जिनवाणी ने जिन सिद्धांतों का अपने ग्रन्थों में प्रतिपादन किया है, जो उनको भली भांति अपने जीवन में उतारते हैं; वे सम्यक्त्वनिधि को पाकर त्रैलोक्य के धनी बन जाते हैं । हे श्रेणिक ! सुनो ! ऐसे पुरुष ही इस मालिका को अपने वक्षस्थल पर धारण करने में समर्थ होते हैं और ऐसे ही पुरुष कमों के पाश से छूटकर मुक्तिस्थान में पहुँचकर चिरकाल पर्यंत निवास करते हैं।

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