Book Title: Samyak Achar Samyak Vichar
Author(s): Gulabchandra Maharaj, Amrutlal
Publisher: Bhagwandas Jain

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Page 320
________________ २६ =सम्यक् विचार= जे सप्त तत्वं पट दर्व युक्तं, पदार्थ काया गुण चेतनेत्वं । विश्वं प्रकाशं तत्वान वेदं श्रुतदेव देवं शुद्धात्म तत्वं ॥ १०॥ , जो सप्त तत्वों को व्यक्त करता, पट द्रव्य जिसको हस्तामलक हैं । पंचास्तिकाया ओ नौ पदारथ, जिसमें निरन्तर देते झलक हैं ।। चैतन्यता से है जो विभूषित, त्रिभुवन-तली को जो जगमगाता । श्रुत - ज्ञान रूपी उस आत्म में ही, रत रह, करो आत्म-कल्याण आता ॥ जो सततच्चों को व्यक्त करता है पट् द्रव्यों से जो युक्त है, पचास्तिकाय और नौ पदार्थ जिसमें निरन्तर अपनी झलक दिखाते रहते हैं. ऐसे विश्व को प्रकाशित करने वाले उस विज्ञान रूपी देवाधिदेव शुद्धात्म तत्र का तुम निरंतर हो आराधन करो, मनन व चिन्तवन करी । " देव गुरुं शास्त्र गुणान नेत्वं सिद्ध गुणं सोलाकारणत्वं । धर्मं गुणं दर्शन ज्ञान चरणं, मालाय गुथतं गुणमत्स्वरूपं ॥ ११ ॥ सत् देव सत् शास्त्र सत् साधुजन में श्रद्धा करो नित्य सम्वधारी । मुक्तिस्थ सिद्धों का नित मनन कर, ध्यावो परम भावनायें सुखारी || शुचि, शुद्ध रत्नत्रय - मालिका से, अपने अमोलक हृदय को सजाओं । शिव पंथ जिन धर्म को ही समझकर उसके निरन्तर सतत गीत गाओ ॥ हे भव्यो ! पर हितोपदेशी, वीतराग, सर्वज्ञ देव में, निग्रंथ गुरु में, तथा कल्याणकारी शास्त्रों में अपनी निष्ठा स्थिर करो, सिद्धों के गुणों का चितवन करो तथा अपनी अध्यात्म- मालिका में समयक्त्व रत्न को पिरोकर जोड़कर, उसकी सौरभ चन्द्रमा की कलाओं के समान दिन दूनी और रात चौगुनी कि जिस बढ़ते हुये प्रकाश में दश धर्म, सम्यक्त्व के आठ अंग तथा दर्शन, ज्ञान और चारित्र स्वरूप रत्नत्रय आदि अनेक गुण प्रगट हो जावें, जो गुण कहीं बाहर नहीं, तुम्हारे में हो विद्यमान हैं ।

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