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.....सम्यक आचार ... ... ... .. .. ... .................[२४१
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शुद्धात्मतत्व का निरूपण व चितवन
संमिक दर्सनं न्यानं, चारित्रं सुद्ध संजमं । जिन रूपं सुद्ध दिव्याथ, साधओ साधु उच्यते ॥४४८॥ सम्यग्दर्शन, ज्ञान, आचरण का जो करते हैं उपदेश । भव्यलोक को संयम पालन. का जो करते हैं निर्देश ॥ आत्मद्रव्य और जिनस्वरूप को, जो नितप्रति दर्शाते हैं ।
वे ही जगतीतल में तारणतरण, साधु कहलाते हैं। जो जगत को सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यक्चारित्र तथा संयम पालन का उपदेश देते हैं तथा जिन भगवान व शुद्ध अत्मद्रव्य. का स्वरूप झलकाते हैं, वही मोक्षपथ के साधक वीतराग साधु कहलाते हैं।
ऊर्ध अधो मध्यं च, लोकालोकं च लोकितं । आत्मानं सुद्धात्मानं, महात्म्यं महाव्रतं ॥४४९॥ ऊर्ध्व. अधो और मध्य, त्रिलोकों में जो यत्र तत्र सर्वत्र । आत्मद्रव्य को हैं विलोकते, सिद्ध समान विशुद्ध पवित्र । पंच महाव्रत का करते हैं, जो सम्यक् साधन गुणवान ।
के ही सरल विशुद्ध आत्मा, कहलाते हैं साधु महान । - जो ऊर्ध्वलोक, अधोलोक और मध्यलोक इन तीनों लोकों में भरी हुई आत्माओं को सिद्ध के समान विशुद्ध और पवित्र देखते हैं तथा पंच महावतों की जो महान साधना करते हैं, वही महान आत्मा धारी उत्तम साधु कहलाते हैं ।