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परम श्रद्धालु और कठोर साधनाओं में रत व्रती सम्यग्दृष्टि के विचार और उसके कर्तव्य
ग्यारह प्रतिमाओं का उत्तरोत्तर पालन
श्रावग धर्म उत्पादंते, आचरनं उत्कृष्टं सदा । प्रतिमा एकादमं प्राक्तं, पंच अनुव्रतं सुद्धये ॥३७८॥ श्री जिन भाषित धर्म-रत्न के, घर घर ध्वज फहरायें । सब संसारी जीव आचरण, अपना श्रेष्ठ बनायें ॥ शुद्ध, पंच अणुव्रत हो जायें, तपकर कुन्दन नाई ।
श्री जिन शासन में इससे, ग्यारह प्रतिमा दरशाई ।। श्री सर्वज्ञ प्रभु के द्वारा कथित मार्ग का अनुसरण करके, गृहस्थगण अपना आचरण पवित्र से पवित्रनम बनायें: धर्म की वृद्धि हो और पंच अणुव्रत तपकर स्वर्ण की नाईं शुद्ध हो जायें, जिनशासन में इसी हेतु ग्यारह प्रतिमाओं का निर्देशन किया गया है। ये प्रतिमाएँ ग्यारह स्थान भी कहलाती हैं।