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सम्यक् आचार
अन्यानतन षट्कस्वैव, तिक्तते जे विचण्यना । कुदेव कुदेव धारी च कुलिंगी कुलिंग मानते ॥ ३८६ ॥
कुगुरु, कुदेव, कुशास्त्र हैं भव्यो, जन्म मरण के प्याले । ये तीनों औ इन तीनों के आराधक मतवाले || ये कहलाते षट अनायतन, जो नरकों के दानी | तज देता है इनको, दर्शन प्रतिमा धारी ज्ञानी ॥
कुदेव, कुगुरु, कुशास्त्र और इन तीनों की उपासना करने वाले, ये छहों मिलकर छह श्रनायतन कहलाते हैं । दर्शन प्रतिमाधारी पुरुष इन छह अनायतनों की भूलकर भी संगति नहीं करते हैं, क्योंकि सांसारिक रागों को बढ़ाने वाले और मनुष्यों का नर्क में पतन कराने वाले होते हैं ।
कुसास्त्रं विकहा रागं, तिक्तते सुद्ध दिस्टतं । कुसास्त्रं राग वृद्धन्ते, अभव्यं नरयं पतं ||३८७ ||
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जिनके पृष्ठों पर दिखती हैं, पद पद पर विकथायें । दर्शनधारी उन ग्रंथों से, रंच न नेह लगायें ॥ राग बढ़ानेवाली ऐसी होतीं जो भी वाणी । उनमें रत हो नर्कों में ही लेता सांसें
प्राणी ॥
कुशास्त्र विकथाओं में राग बढ़ाने के कारण जानकर दर्शन प्रतिमाधारी सम्यग्दृष्टि पुरुष ऐसे शात्रों की मान्यता नहीं करता, क्योंकि कुशास्त्र सांसारिक वासनाओं में राग बढ़ाकर अभव्य जीव को नर्क पतन करा देते हैं ।