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सम्यक आचार
प्रतिमा एकादमं जेन, जिन उक्तं जिनागमे । पालंति भव्य जीवानं, मन मुद्धं म्वात्म चिंतनं ॥४३६॥ श्री सर्वज्ञ जिन्हें दर्शाते, जिनश्रुत जिनको गायें । उनही के अनुरूप व्यक्त की, एकादश प्रतिमायें ॥ इन प्रतिमाओं को वे ही. भविजन पालन करते हैं । जो हो मनमा शुद्ध, आत्म का ध्यान सदा धरते हैं ।
श्री जिनेन्द्र प्रभु द्वारा निर्दिष्ट दो ग्यारह प्रतिमाएं हैं उनका वे ही भव्यजीव पालन करते हैं जा अपने मन को मर्वदा शुद्ध रखते हैं तथा अपने आत्मा के ही चितवन में जो निरन्तर लवलीन रहा करते हैं।
पंच अणुव्रतों की निर्मलता में उत्तरोत्तर वृद्धि
अनुव्रतं पंच उत्पादंते, अहिंसा नृत उच्यते । अस्तेयं ब्रह्म व्रतं सुद्धं, अपरिग्रहं म उच्यते ॥४३७॥ हिंसा, चोरी, झूठ, परिग्रह. और कुशील दुखारी । इनसे उलटे होते हैं जो, अणुव्रत पांच सुखारी ॥ जो गृहस्थगण ग्यारह प्रतिमायें, क्रमशः धरते हैं । ये पांचों अणुव्रत वे पल पल, वृद्धिंगत करते हैं।
जो श्रावक उन ग्यारह प्रतिमाओं का पालन करते हैं, वे निम्नांकित पांच अणुव्रतों का पालन करते हैं, और उन्हें क्रमश: उत्तरोत्तर बढ़ाते जाते हैं । १-अहिंसा, २-सत्य, ३-अस्तेय, ४-ब्रह्मचर्या, ५-अपरिग्रह ।