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सम्यक आचार
अरिहंत देव तिम्टते, ह्रींकारेन सास्वतं । उवं अर्ध मद्भावं, निर्वानं सास्वतं पदं ॥ ४६ ॥
ह्रीं मंत्र पद में बसते हैं, चार चतुष्टय धारी । चतुर्विंश तीर्थंकर निष्कल, श्री अरहन्त सुखारी ॥ ॐ मंत्र में विचरण करते, सिद्ध शिला के नायक | श्रेष्ठ, ऊर्ध्व, वसु कर्म विजेता, अग जग घट घट ज्ञायक ॥
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ह्रीं मंत्र पद में, कर्मों के विजेता अरहन्त भगवान, चौबीस तीर्थंकरों महित शोभायमान है और
श्रम में वे सिद्ध भगवान वास करते हैं, जो निश्चल ध्रुव निर्वाण पढ़ के वासी हैं।