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सम्यक् आचार
चत्वारि गुण जानते, पूजा वेदंत जे बुधै । मंसार भ्रमण मुक्तस्य, सुद्धं मुक्ति गामिनो ॥३५८॥
करता है विज्ञ सदा, चतुर अनुयोग का अभ्यास है । होता है इनकी अर्चना में, विपुल सौख्याभास है । भव-सिन्धु में चिरकाल से, जो डूबते, अज्ञान हैं ।
श्रुतियें बचाकर उन्हें करती, मोक्ष-सौख्य प्रदान हैं । जो बुद्धिमान पुरुष होते हैं, वे इन चारों अनुयोगों के शास्त्रों का भली प्रकार अभ्यास करते हैं। ये शास्त्र संसार में भ्रमण करने वाले प्राणी को, संसार से छुड़ा देते हैं और अंत में उसे मोक्ष का मुख प्रदान करते हैं।
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श्रियं संमिक दर्सनं च, संमिक दर्सन मुद्यमं । मंमिक्तं संपूरनं सुद्धं च, ति अर्थ पंच दीप्तयं ॥३५९॥ सर्वज्ञभाषित सुश्रुत क्या हैं ? स्वयं ही सम्यक्त्व हैं । सम्यक्त्व, वह जिसमें निहित रे ! विश्व के सब तत्व हैं । जो तीन रत्नों का गगनचुम्बी, अलौकिक केतु है।
सम्यक्त्व, वह परमेष्ठियों का, जो प्रकाशन हेतु है ॥ सर्वज्ञ भाषित ये शास्त्र उस सम्यग्दर्शन के साक्षात प्रतीक हैं, जो सब अर्थों में सम्पूर्ण हैं और शुद्ध हैं, जिसके प्राधान्य में ज्ञान और आचरण दोनों का अस्तित्व निहित है तथा संसार को प्रकाशित करने वाले पंच परमेष्ठियों के स्वरूप को प्रकाश में लाने का जो एकमात्र साधन है।